विद्या सिन्हा

विद्या सिन्हा को आज की पीढ़ी शायद टीवी सीरियल्स की बदौलत पहचानती हो,या फिर फ़िल्म बॉडीगार्ड के कारण। लेकिन वो अपने समय की मिस बॉम्बे और मशहूर अभिनेत्री थीं, जिन्होंने रजनीगंधा, पति पत्नी और वो, स्वयंवर जैसी कई यादगार फ़िल्में दीं।

70 का दशक हिंदी सिनेमा में कई तरह के बदलाव लेकर आया। हीरो-हीरोइन्स की पारंपिक छवि बदल रही थी तो स्टोरी टेलिंग का स्टाइल भी। लार्जर देन लाइफ किरदार सुपर-डुपर हिट हो रहे थे वहीं ज़मीन से जुड़े यथार्थवादी किरदारों और फ़िल्मों को भी पसंद किया जा रहा था। इन्हीं सब के बीच कुछ ऐसे हीरो हीरोइन्स का आगमन हुआ जिन्हें हम “गर्ल नेक्स्ट डोर ” या बॉय नेक्स्ट डोर” कहते हैं। यानी ऐसे चेहरे जो फ़िल्मी हीरो से ज़रा हटके थे, वो बिलकुल हमारे आस पास के लगते थे। ऐसी ही अभिनेत्री थीं – विद्या सिन्हा, ख़ूबसूरत लेकिन सादा।

विद्या सिन्हा ने कभी अपना करियर प्लान नहीं किया

विद्या सिन्हा ने जब 70 के दशक में एक प्यारी सी प्रेम कहानी से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरु किया था तो अपनी सादगी से उन्होंने सभी को मोहित कर दिया था। 15 नवम्बर 1947 को उनके जन्म के तुरंत बाद ही उनकी माँ चल बसीं। और फिर उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, ऐसे में उनकी परवरिश हुई अपने ननिहाल में। फ़िल्मी माहौल उन्हें बचपन से ही मिला क्यूंकि उनके नाना मोहन सिन्हा अपने ज़माने के जाने-माने फिल्म डायरेक्टर थे और उनके पिता प्रताप A राना भी फ़िल्म प्रोडूसर थे।

विद्या सिन्हा

तो फिल्मों में उनका आना कोई अचरज की बात नहीं थी, पर उन्होंने इसके लिए कोई ट्रैंनिंग नहीं ली थी और शायद कभी सोचा भी नहीं था। अपनी एक आंटी के कहने पर विद्या सिन्हा ने ब्यूटी कांटेस्ट में हिस्सा लिया और 1968 में वो ये कांटेस्ट जीत कर “मिस बॉम्बे” बन गईं। उसके बाद मॉडलिंग का सफ़र शुरु हुआ। उस दौर के लगभग सभी टॉप ब्रांड्स के लिए उन्होंने मॉडलिंग की। ये सब बस होता गया उन्होंने कभी बहुत गंभीरता से अपना करियर प्लान नहीं किया। इसी दौरान पड़ोस में रहने वाले तमिल लड़के से उन्हें इश्क़ हुआ और 19 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई वेंकटेश्वरन अय्यर से।

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शादी के बाद विद्या सिन्हा को फ़िल्म का पहला ऑफर मिला। उनके मॉडलिंग के फोटोग्राफ़्स देखकर मशहूर फ़िल्मकार बासु चटर्जी को लगा कि उनकी फिल्म के लिए वही बेस्ट हीरोइन रहेंगी। इस तरह 1974 की फ़िल्म “रजनीगंधा”से उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हो गया। हाँलाकि उन्होंने जो फ़िल्म पहले साइन की, वो थी “राजा काका” पर पहले रिलीज़ हुई “रजनीगंधा”, उनके घरवाले उनके फिल्मों में आने से ख़ुश नहीं थे, पर उनकी ज़िद के आगे उन्हें मानना ही पड़ा। उन्हें फिल्मों की शूटिंग लाइटिंग या अभिनय की कोई जानकारी नहीं थी। पर बासु दा ने उन्हें पूरी तरह ट्रेंड कर दिया, इसलिए वो उन्हें अपना मेंटोर मानती हैं।

विद्या सिन्हा

1974 से 1986 के बीच विद्या सिन्हा की लगभग 30 फिल्में आईं जिनमें उन्हें बासु चटर्जी ( छोटी सी बात और तुम्हारे लिए ) की और गुलज़ार ( किताब ) जैसे निर्देशकों का साथ तो मिला ही बी आर चोपड़ा ( कर्म, पति पत्नी और वो ) जैसे निर्देशकों का साथ भी मिला। कहते हैं राज कपूर सत्यम शिवम् सुंदरम में उन्हें लेना चाहते थे पर वो उस क़िस्म के कपड़ों में सहज महसूस नहीं कर पाती इसीलिए उन्होंने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया।

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अमोल पालेकर से लेकर विनोद खन्ना, संजीव कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद मेहरा, राजेश खन्ना तक  के लगभग सभी बड़े स्टार्स के साथ उन्होंने काम किया। उस दौरान उन्होंने दूरदर्शन के लिए कुछ धारावाहिकों का निर्माण किया साथ ही एक मराठी और एक गुजराती फ़िल्म का निर्माण भी किया। विद्या सिन्हा उन दिनों अपने करियर के पीक पर थीं जब उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया जिसका नाम रखा जाह्नवी और फिर उसकी परवरिश के लिए उन्होंने फ़िल्मी दुनिया से दुरी बना ली। बच्ची के थोड़ा बड़ा होने पर जब वो लौटीं तो फिल्मों का सेनारियो काफ़ी बदल चुका था।

विद्या सिन्हा

हाँलाकि इस बात का उन्हें आज भी अफ़सोस है, पर वो रुकी नहीं बल्कि उन्होंने टीवी का रुख़ कर लिया, उनका पहला टीवी धारावाहिक था तमन्ना। इसी बीच 1996 में उनके पति की मृत्यु हो गई और कुछ सालों बाद वो एक ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले डॉक्टर नेताजी भीमराव सालुंके से शादी करके ऑस्ट्रेलिया चली गईं। पर ये शादी उनके लिए सुखद नहीं रही और आख़िरकार वो अलग हो गईं। विद्या सिन्हा 2011 में “बॉडीगॉर्ड” फ़िल्म में नज़र आई थीं। “क़ुबूल है”, “चंद्र नंदिनी”, “इत्ती सी ख़ुशी” जैसे कई टीवी धारावाहिकों में वो दादी-नानी की भूमिका में नज़र आई थीं। बल्कि इन भूमिकाओं में वो ज़्यादा चार्मिंग लगती थीं।

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अपने ज़माने की मिस बॉम्बे, फिर बड़े परदे पर चुपचाप सी दिखने वाली ख़ूबसूरती और सादगी की मूरत और बाद के दौर की चार्मिंग, कभी कभी शरारती दादी-नानी विद्या सिन्हा ने 2019 में देश की आज़ादी के दिन यानी 15 अगस्त को आख़िरी साँस ली। उनकी मौत का बहुत ज़्यादा शोर नहीं हुआ इसलिए उनकी मौत के बारे बहुत से लोगों को पता भी नहीं चला। जितनी ख़ामोशी से उनकी फ़िल्मों में एंट्री हुई वैसे ही चुपचाप वो इस दुनिया से चली गईं।

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