अचला सचदेव

Popular On-Screen Mother – Achala Sachdev

अचला सचदेव – (3 May 1920 – 30 April 2012) – भारतीय अभिनेत्री और रुपहले परदे की लोकप्रिय माँ। आम ज़िंदगी की तरह हिंदी सिनेमा में भी माँ के बहुत से रुप देखने को मिलते हैं, लेकिन अचला सचदेव सिनेमा की एक माँ ऐसी थीं जो हिंदी फ़िल्मों की ज़ोहरा जबीं के रुप में अमर हो गईं, उन्हें बाद के दौर में “ग्रैंड माँ ऑफ़ द इंडियन सिनेमा” के नाम से जाना गया। अचला सचदेव को बहुत कम उम्र से ही माँ के रोल्स मिलने लगे थे। मुस्कुराती, सौम्य हँसी वाली, मीठा-मीठा बोलने वाली माँ। 

हँसती-मुस्कुराती माँ की छवि बनी अचला सचदेव की

हाँलाकि 50s से लेकर 80s तक अचला सचदेव ने काफ़ी अलग-अलग मिज़ाज की फिल्में कीं। इस दौर में बहुत सी फिल्में आईं जिनमें उन्होंने डॉक्टर, गुरु, भाभी जैसे रोल भी किये। “हीर-राँझा” में राँझा की भाभी के रूप में आप उन्हें परदे पर नाचते-गाते देख सकते हैं। लेकिन सिर्फ़ माँ की भूमिका की बात करें तो उस में भी उनके कई अलग अलग शेड्स देखने को मिले।

अचला सचदेव
अचला सचदेव

“सम्पूर्ण रामायण” में उन्होंने माता कौशल्या की भूमिका निभाई, “मेरी सूरत तेरी आँखें” में उनका किरदार एक ऐसी औरत का था जिसके पति को बदसूरती बर्दाश्त नहीं होती थी इसलिए वो अपने जन्मजात बच्चे को किसी को दे देता है और अपनी पत्नी से कह देता है कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था। लेकिन जब वो बच्चा बड़ा होने पर माँ के सामने आता है तो माँ की ममता उसे अपना ही मानती है और “हरे रामा हरे कृष्णा” में वो मॉडर्न माँ के रोल में दिखीं। 

3 मई 1930 को पेशावर में जन्मी अचला सचदेव,चार बहनों में सबसे छोटी थीं। उनके जन्म के कुछ महीनों बाद ही इनके पिता चल बसे, पूरे परिवार के लिए ये संकट की घड़ी थी और इसका असर उनके पूरे बचपन पर पड़ा। बचपन से ही उन्होंने काम करना शुरू कर दिया था, देश के विभाजन से पहले वो ALL INDIA RADIO लाहौर पर बतौर ड्रामा आर्टिस्ट काम किया करती थीं, बाद में कुछ वक़्त दिल्ली स्टेशन पर भी काम किया।

फ़िल्मों में उनकी शुरुआत हुई 1938 की फ़िल्म “फ़ैशनेबल वाइफ” से। और दो-एक साल बाद ही बहुत कम उम्र होते हुए भी उन्हें माँ की भूमिकाएँ मिलने लगीं और शायद घर के हालात देखते हुए उन्होंने वो ऑफर्स एक्सेप्ट कर लिए लेकिन फ़िल्म इंडस्ट्री में उस समय ये चलन था कि एक बार जो कलाकार जिस तरह की भूमिकाओं में दिखने लगा या पसंद किया गया, उसे फिर उसी तरह के किरदार मिलने लगते थे। वही अचला सचदेव के साथ भी हुआ, हाँलाकि वो फ़िल्मों में कुछ अलग करना चाहती थीं, ख़ासतौर पर कॉमेडी करने की उनकी बहुत इच्छा थी पर नियति ने उन्हें माँ के किरदार तक सीमित कर दिया।

अचला सचदेव
अचला सचदेव

अचला सचदेव की मशहूर फ़िल्में 

अपने पूरे फ़िल्मी सफ़र में उन्होंने क़रीब 250 फिल्मों में काम किया जिनमें “अदालत”, “दिल एक मंदिर”, “वक़्त”, “हिमालय की गोद में”, “शागिर्द”, “हमराज़”, “कन्यादान”, “आदमी और इंसान”, “प्रेम पुजारी”,”पवित्र पापी”,”आरज़ू”, “वक़्त”, “मेरा नाम जोकर”, “हरे रामा हरे कृष्णा”, “अंदाज़”, “हँसते ज़ख़्म”, “दाग़”, “कोरा काग़ज़”, “जूली”, “चाँदनी(89)”, “दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे(95)”, “कभी ख़ुशी-कभी ग़म(2001)” जैसी कई हिंदी फिल्मों के नाम ले सकते हैं। उन्होंने 1963 की “NINE HOURS TO RAMA” और मर्चेंट आइवरी की “THE HOUSEHOLDER” जैसी इंग्लिश फिल्मों में भी काम किया। उनकी आख़िरी फ़िल्म थी 2002 में आई “न तुम जानो न हम” 

अचला सचदेव कई बड़े फिल्मकारों की पसंदीदा अभिनेत्री थीं। इनमें सबसे पहले तो यश चोपड़ा का ही नाम ले लें जिनकी फ़िल्म “वक़्त” ने उन्हें ज़ोहरा जबीं का ख़िताब दिलाया, उसके बाद भी वो उनकी “आदमी और इंसान”, “दाग़”, “चाँदनी” जैसी कई फ़िल्मों का हिस्सा रहीं। यशराज बैनर की बाद के दौर की फिल्म “दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे” में तो दादी के रोल में भी नज़र आईं। इस दौर में उन्होंने करण जौहर की “कभी ख़ुशी कभी ग़म” में भी दादी का किरदार निभाया और ऐसा निभाया कि उन्हें “ग्रैंड माँ ऑफ़ द इंडियन सिनेमा” (Grand Maa of The Indian Cinema) कहा जाने लगा। 

अचला सचदेव का निजी जीवन (Personal Life)

अचला सचदेव की पहली शादी हुई थी ज्ञान सचदेव से, जो कि फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर हुआ करते थे। उनका एक बेटा भी हुआ मगर ये शादी ज़्यादा चल नहीं पाई और दोनों अलग हो गए। उनकी दूसरी शादी हुई पुणे के एक व्यवसायी क्लिफर्ड डगलस पीटर्स से। यश चोपड़ा ने ही इन दोनों की मुलाक़ात कराई थी।

पीटर्स की पत्नी की मौत हो चुकी थी और अचला सचदेव भी अकेली थीं तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। शादी के बाद वो अपने पति के साथ पुणे जाकर बस गईं, जहाँ उनके पति का एक बंगला था। जब उनके पति की मौत हो गई तो वो एकदम अकेली रह गई थीं, पर वो एक संस्था से जुडी हुई थी जो समाज की तरक़्क़ी के लिए काम करती थी। बाद में उन्होंने अपना बंगला उसी संस्था के नाम कर दिया था, लेकिन इस शर्त पर की वो लोग ताउम्र उनका ध्यान रखेंगे। 

2011 में वो रसोई में फिसल गईं और उसके बाद उन्हें लकवा मार गया, उस वक़्त उन्हें हॉस्पिटल में ही रखा गया। लेकिन हालत दिन-ब-दिन ख़राब होती गई और 2012 में 30 अप्रैल को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका एक बेटा है जो US में रहता है और एक बेटी है जिसके साथ उनके रिश्ते न के बराबर थे। 

चरित्र कलाकार किसी भी फ़िल्म की जान होते हैं मगर विडम्बना ये है कि उन्हें अक्सर वो पॉपुलेरिटी और फेम नहीं मिलता जिसके वो हक़दार होते हैं। ऐसा ही कुछ अचला सचदेव के साथ भी हुआ, मगर हिंदी सिनेमा की  ममतामयी माँ और उससे भी बढ़कर हिंदी सिनेमा की ज़ोहराजबीं के रूप में उन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता।

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6 thoughts on “अचला सचदेव – बॉलीवुड की ओरिजिनल “ज़ोहरा जबीं””
  1. […] माँ की महानता पर बहुत कुछ लिखा गया है कहा गया है मगर पिता पर लिखते हुए सभी ने थोड़ी कंजूसी कर दी। कभी-कभी तो लगता है कि लोगों ने शायद इस डर से पिता पर नहीं लिखा कि कहीं माँ को बुरा न लग जाए। पढ़ने-सुनने में ये बात अजीब लग सकती है मगर परिवारों में ऐसा अक्सर होता है। माता-पिता एक दूसरे से कितना भी प्यार करें पर औलाद पर माएँ अपना पहला हक़ समझती आई हैं। शायद इसलिए कि वो अपना प्यार दुःख-दर्द सब अपने बच्चों के साथ बाँटती हैं इसीलिए बच्चे भी माँ से जल्दी जुड़ते हैं और बेहतर समझते हैं।  […]

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