तबस्सुम

तबस्सुम (9 July 1944 – 18 Nov 2022) – 18 नवम्बर 2022 को मशहूर अदाकारा तबस्सुम का 78 साल की उम्र में ह्रदय गति रुकने से निधन हो गया। एक बाल कलाकार के रूप में उन्हें जो शोहरत मिली वो बहुत कम चाइल्ड आर्टिस्ट को मिलती है इसीलिए वो हमेशा बेबी तबस्सुम के नाम से याद की जाती रहीं। उसके अलावा वो दूरदर्शन पर प्रसारित हुए अपने टॉक शो से भी ख़ासी मशहूर हुईं और उनके जोक्स का तो कहना ही क्या ! उनके बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो शायद आप न जानते हों।

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40s 50s में कुछ बाल कलाकार बहुत मशहूर हुए उनमें से एक थीं – बेबी तबस्सुम, जिन्हें पहली स्टार चाइल्ड आर्टिस्ट कह सकते हैं और वो इंडस्ट्री की सबसे सीनियर आर्टिस्ट भी थीं क्योंकि वो 1946 से फ़िल्म इंडस्ट्री का हिस्सा थीं। मात्र तीन साल की उम्र से उन्होंने फ़िल्मों में काम करना शुरु कर दिया था। और छोटी उम्र से ही रेडियो पर फुलवारी नाम से एक शो भी करने लगी थीं। 9 जुलाई 1944 को अयोध्यानाथ सचदेव और असगरी बेगम के घर जन्म हुआ तबस्सुम का उनके दो बड़े भाई और एक बड़ी बहन थीं।

तबस्सुम का असली नाम था किरणबाला

तबस्सुम के माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और दोनों बतौर पत्रकार दिल्ली के एक अख़बार में काम करते थे फिर उनका ट्रांसफर मुंबई हो गया। वो एक दूसरे के धर्म की बहुत इज़्ज़त करते थे इसीलिए उनके पिता ने उनका नाम तबस्सुम रखा और उनकी माँ ने किरणबाला। ऑफिशल डाक्यूमेंट्स में उनका नाम किरणबाला ही है लेकिन स्क्रीन पर वो जानी गईं तबस्सुम के नाम से। उनकी माँ मुंबई में एक मंथली मैगज़ीन निकालती थीं तनवीर। जिसमें उस समय के बड़े-बड़े लेखक लिखा करते थे।

तबस्सुम
तबस्सुम

उनकी माँ सिनेमा के कई कलाकारों को उर्दू भी सिखाया करती थीं जिनमें कमला कोटनिस के अलावा गोविंदा के पिता अर्जुन आहूजा भी थे। उस समय छोटी सी तबस्सुम भी साथ में बैठा करती थीं शायद इसीलिए उनकी उर्दू इतनी लाजवाब थी। सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान उनकी माँ की मैगज़ीन लगभग बंद होने के कगार पर आ गई थी। उन्हीं दिनों तबस्सुम को एक फ़िल्म का ऑफरआया, मगर उनके पिता अपनी बच्ची को फ़िल्म लाइन में नहीं भेजना चाहते थे। पर हालात देखते हुए लोगों की सलाह पर वो राज़ी हो गए और फिर वो 1947 की फ़िल्म “नरगिस” में पहली बार बतौर बाल कलाकार परदे पर नज़र आईं।

तबस्सुम थीं पहली स्टार बाल कलाकार

फ़िल्म नरगिस के लिए उन्हें 5000 रूपए फीस दी गई जो कि उस समय के लिहाज़ से बहुत बड़ी रक़म थी। इस फ़िल्म के बाद भी उनके पेरेंट्स नहीं चाहते थे कि वो फ़िल्मों में आगे काम करें इसीलिए जब सोहराब मोदी अपनी फ़िल्म “मझधार” का ऑफर लेकर आये तो उनकी माँ ने फ़ीस डबल करके 10,000 रूपए बताई ताकि सोहराब मोदी इतनी ज़्यादा फ़ीस सुनकर वापस लौट जाएँ मगर उन्होंने कहा कि वो 12,000 देंगे। वो फ़िल्म तो नहीं चली मगर फिल्म में 4 साल की तबस्सुम ने जो उर्दू बोली उसके सब क़ायल हो गए।

इसके बाद तो बेबी तबस्सुम एक के बाद एक फ़िल्म करती गई और एक वक़्त ऐसा आया जब उन्हें एक फिल्म का 7 से 8 लाख रूपए दिया जाता था। इस तरह वो अपने समय की स्टार चाइल्ड आर्टिस्ट बन गईं। “बड़ी बहन”, “जोगन”, “दीदार”, “अफ़साना”, “बैजू बावरा” जैसी फ़िल्मों में उन्होंने बतौर बाल कलाकार अपनी छाप छोड़ी। “दीदार” में उन पर फिल्माया गाना “बचपन के दिन भुला न देना आज हँसे कल रुला न देना” बहुत मशहूर हुआ और सालों साल दोहराया जाता रहा।

तबस्सुम
तबस्सुम और परीक्षित साहनी

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चाइल्ड आर्टिस्ट की उम्र बहुत कम होती है उम्र बढ़ने के साथ वो न तो बच्चे ही रह जाते हैं न ही हीरो-हिरोइन के रोल में फिट हो पाते हैं। और ये भी देखा गया है कि जिन कलाकारों ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बहुत नाम कमाया हो दर्शक उन्हें हीरो-हिरोइन के रूप में उस तरह एक्सेप्ट नहीं करते, ऐसा ही तबस्सुम के साथ भी हुआ। 13 साल की उम्र में उनकी आख़िरी फिल्म आई “बाप बेटी” इसके बाद उन्होंने फिल्मों से ब्रेक ले लिया। और जब वो पूरी तैयारी के साथ वापस आईं तो हिरोइन के रोल के लिए उन्हें कोई बड़ी फ़िल्म ऑफर नहीं हुई।

कामयाब हेरोइन तो नहीं बन सकीं पर लाजवाब एंकर बन कर सब पर छा गईं

तबस्सुम को बी और सी ग्रेड की फिल्में ही मिल रही थीं ऐसी ही फ़िल्म थी “जिम्बो का बेटा”, जिससे उन्होंने शुरुआत की। बड़ी फ़िल्मों में उन्हें छोटे मोटे साइड रोल्स से गुज़ारा करना पड़ा। उनके करियर की रफ़्तार को देखते हुए उनके पेरेंट्स ने उनकी शादी कर दी। आपको रामानंद सागर की रामायण के राम तो याद होंगे, जिनका असली नाम है अरुण गोविल। उन्हीं के बड़े भाई विजय गोविल से उनकी शादी हुई। उनका एक ही बेटा है होशांग जिसे एक्टर बनाने की कोशिश में तबस्सुम ने 1985 में एक बनाई “तुम पर हम क़ुर्बान” मगर फ़िल्म फ़्लॉप रही।

तबस्सुम
तबस्सुम

“तुम पर हम क़ुर्बान” इस फिल्म का एक बहुत बड़ा कंट्रीब्यूशन जो फ़िल्म इंडस्ट्री में है वो ये कि तबस्सुम ने इस फिल्म से जॉनी लिवर को इंट्रोड्यूस किया था। शादी के बाद तबस्सुम जब कोई काम नहीं कर रही थीं तब अमीन सायानी के प्रेरित करने पर उन्होंने रेडियो पर अपनी दूसरी पारी शुरू की जो बेहद कामयाब रही। वो रेडियो सीलोन पर एक शो किया करती थीं जिसमें जोक सुनाए जाते थे और जोक सुनाने में उनका कोई मुक़ाबला नहीं था, उनका वो शो कोई 18 साल तक चला। जोक्स पर उनकी क़रीब 10 किताबें छप चुकी हैं।  

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तबस्सुम को ये दुःख तो रहा कि वो एक कामयाब हेरोइन नहीं बन सकीं मगर रेडियो और टीवी की मशहूर एंकर के तौर पर उन्होंने अपनी ऐसी धाक जमाई की आज भी लोग तबस्सुम को याद करते हैं। शायद आपने भी उनका शो देखा हो “फूल खिले हैं गुलशन गुलशन”। ये पहला भारतीय टॉक शो था जो 1972 से 1993 तक यानी क़रीब 21 साल लगातार दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। उस पीढ़ी का शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसने वो शो न देखा हो। उस समय सभी लोगों के घर में टीवी नहीं होता था लेकिन उस शो को देखने लोग पड़ोसियों के घर चले जाया करते थे।

तबस्सुम
तबस्सुम

तबस्सुम ने जितना नाम सिनेमा के परदे पर कमाया, उससे कहीं ज़्यादा इस शो ने उन्हें पहचान दी और वो घर घर में जानी जाने लगीं। उस शो में वो अपनी प्यारी सी मुस्कान और शायरी से सबका दिल जीत लेती थीं। कहते हैं उन्होंने शायरी भी उस उम्र से शुरु कर दी थी जिस उम्र में बच्चे शब्दों के मतलब भी नहीं जानते। उनकी शायरी की किताब भी छप चुकी है। सिनेमा, रेडियो टीवी के अलावा तबस्सुम स्टेज एंकर के तौर पर भी काफी मशहूर रहीं। साथ ही वो एक हिंदी मेगज़ीन गृहलक्ष्मी की एडिटर भी थीं, ये मैगज़ीन महिलाओं में काफी पॉपुलर है।

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1946 में इंडस्ट्री में क़दम रखने वाली तबस्सुम वक़्त के हमेशा ख़ुद को बदलती रहीं इसीलिए हर दौर में छाई रहीं। उन्होंने कुछेक टीवी सीरियल्स में भी काम किया और और कुछ सालों से वो ‘तबस्सुम टॉकीज़’ के नाम से अपना यूट्यूब चैनल भी चला रही थीं जिस पर वो बहुत सी फ़िल्मी हस्तियों के छुए-अनछुए पहलू और इंटरेस्टिंग किस्से साझा किया करती थीं और अपने उसी मख़सूस अंदाज़ में कहती थीं “नमस्कार! आदाब मैं हूँ आपकी अपनी तबस्सुम”। तबस्सुम भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं मगर उनकी क्रिएटिविटी का हर पहलू हमेशा लोगों को उनकी याद दिलाता रहेगा।

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