आम

आम के दीवानों के लिए है आज का दिन यानी National Mango Day जो हर साल 22 जुलाई को मनाया जाता है। इस मौके पर आइये कोशिश करते हैं ये जानने की कि आप अपने फ़ेवरेट मेंगो के बारे में कितना जानते हैं !

गर्मियों की आन-बान और शान “आम”, आम लोगों के लिए तो बेहद ख़ास है ही, उसने ख़ास लोगों का दिल भी जीता है। “मिर्ज़ा ग़ालिब” को कौन नहीं जानता और सभी इस फल के प्रति उनकी दीवानगी से भी वाक़िफ़ हैं। लेकिन उनके एक दोस्त को जैसे इस मीठे फल से बेहद नफ़रत थी। इस बात पर दोनों की अक्सर बहस भी हो जाती थी।

एक बार दोनों कहीं बाहर बैठे थे, वहां रास्ते में आम के छिलके पड़े हुए थे। तभी वहाँ एक गधा आया, उसने उन छिलकों को सूंघा और बिना खाए आगे बढ़ गया। उनके दोस्त ने कहा – देखा! आम ऐसी चीज़ है जिसे गधा भी नहीं खाता। तो मिर्ज़ा ग़ालिब ने तुरंत कहा “बेशक़… गधे आम नहीं खाते”।

शायद ही कोई होगा जिसे ये मीठा रसीला फल पसंद न हों। वैसे भी गर्मियाँ ज्यों ही दस्तक देती हैं हर तरफ़ मेंगो ही मेंगो दिखाई देता है। पुरानी दिल्ली या किसी भी पुराने शहर की बातचीत में भी इस ने जगह बनाई हुई थी। अब तो कम ही लोग मुहावरों या कहावतों का प्रयोग करते हैं मगर पहले तो बात-बात में कह दिया जाता था – “आम के आम गुठलियों के दाम”, “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए”  आप में से बहुतों ने इन कहावतों को अपने बचपन में सुना होगा।

आम

इतिहास में आम

ये एक ऐसा फल है जिसका ज़िक्र प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, इससे पता चलता है कि ये पूरी तरह हमारा फल है जो भारत में लगभग 5000 साल पहले से उगाया जाता रहा है। कहा जाता है कि हज़ारों साल पहले आम के पेड़ असम और बर्मा के सरहदी जंगलों में पनपे थे और यहीं से वो पूरे भारत में फैले। कहते हैं सिकंदर को ये इतने पसंद आए कि वो अपने साथ आम की कलमें भी ले गया। चौथी-पांचवीं शताब्दी पूर्व ही आम एशिया के दक्षिण पूर्व तक पहुँच गया था।

सदियों पहले पुर्तगाली व्यापारी केरल से मसालों के साथ-साथ इसे भी अपने साथ ले गए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग जब सातवीं शताब्दी में भारत आया तो अपने साथ इन्हें लेकर गया और तब से वहां भी इस रसीले फल की खेती शुरू हो गई। दुनिया के कई हिस्सों में जो आम फल-फूल रहे हैं उनकी जड़ें कहीं न कहीं अपने हिन्दुस्तान से जुड़ती हैं।

तमिल में इसे “मंगा” बोलते थे और इसी से अंग्रेजी का मेंगो (Mango) बना।

दुनिया भर में इस रसीले “मँगा” की या कहें “मेंगो” की जानी-अनजानी क़रीब 1300 क़िस्में हैं उनमें से ज़्यादातर हिंदुस्तानी हैं। लंगड़ा, कलमी, चौंसा, दसहरी, जुन्नार, अल्फांसो, सफेदा, तोतापरी, सिंदूरी, पेरी, केसर, हिमसागर, नीलम, मालदा और भी न जाने क्या क्या। कुछ मलाईदार और मीठे, कुछ खट्टे, कुछ थोड़े गर्म, कुछ अनानास जैसे नरम। ये न सिर्फ रंग-रूप में अलग-अलग है बल्कि अपने वजन और आकार में भी। अंगूरदाना” और “टनटन” वो क़िस्में हैं जो सबसे छोटी होती हैं, वहीं अफगानिस्तान से आया “नूरजहाँ” सबसे बड़ा आम माना जाता है, जो औसतन एक फ़ीट लम्बा और सात किलो तक का हो सकता है।

आम

इसके नामकरण की कहानियाँ

इनकी क़िस्मों के नामकरण की भी बहुत सी कहानियाँ हैं। आमतौर पर तो उनके रंग रूप और गुणों के मुताबिक उनका नाम रखा गया है पर कुछ क़िस्मों के नाम उनके जन्मस्थान के नाम पर हैं। लेकिन कोविड 19 के चलते इसकी एक क़िस्म का नाम “लॉक डाउन” रखा गया है। लखनऊ ज़िले के काकोरी के पास एक गाँव है दसहरी जिस पर दसहरी आम का नाम पड़ा। इसके पीछे यूँ तो कई क़िस्से मशहूर हैं पर एक कहानी बहुत मशहूर है-

कहते हैं कुछ लोग अलग-अलग क़िस्म के आमों को लेकर कहीं जा रहे थे कि तभी अचानक बहुत तेज़ बारिश आ गई। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी तो ऐसे में उन लोगों ने सारे आमों को एक जगह पर डाल दिया और घर चले गए। तरह दिन तक लगातार बारिश होती रही। बाद में वहां एक के ऊपर एक सटे हुए अम्बोले निकले और फिर एक पेड़ में बदल गए इसी पेड़ का फल है “दसहरी” कहते हैं कि आज भी डेढ़ सौ साल पुराना ये पेड़ वहां मौजूद है। और कहते तो ये भी हैं कि आम का पेड़ कितना भी पुराना क्यों न हो उस पर फल लगते रहते हैं।

दसहरी के अलावा चौंसा हरदोई का एक जिला है जिस पर इसका नामकरण हुआ। “रटौल” बाग़पत के रटौल” पर पड़ा, “मालदा” पश्चिम बंगाल के मालदा पर और बंगलोरा “बेंगलुरु’ पर पड़ा। सोलहवीं सदी के एक पुर्तगाली के नाम पर अल्फांज़ो का नामकरण हुआ क्योंकि कोंकण की इस क़िस्म से उसी ने दुनिया का परिचय कराया था। पर अम्बाला और अमरोहा इन जगहों का तो नाम ही इस फल की क़िस्म के नाम पर रखा गया।

महाकवि कालिदास के ग्रंथों में इसका ज़िक्र मिलता है। अमीर ख़ुसरो ने इसपर पहेलियाँ बनाई तो गुरुदेव ने “आमेर मंजरी” रच डाली। अल्लामा इक़बाल, अकबर इलाहबादी और जोश मलीहाबादी भी इस मीठे रसीले फल के दीवाने रहे। इसीलिए शायरी भी इसके असर से अछूती नहीं रही। अकबर इलाहबादी लिखते हैं –

“नामा न कोई यार का पैग़ाम भेजिए इस फ़स्ल में जो भेजिए, बस आम भेजिए।
ऐसे ज़रूर हो कि, जिन्हें रख के खा सकूँ पुख़्ता अगर हों बीस, तो दस खाम भेजिए।

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आम को फलों का राजा की उपाधि किसने दी ?

बाबर से लेकर औरंगज़ेब तक हर मुग़ल बादशाह का ये पसंदीदा फल रहा है। बादशाह अकबर को ये इतने पसंद आये कि उन्होंने इसे “फलों के राजा” की उपाधि दे डाली। कहते हैं बौद्ध काल में आमों के पेड़ों की निगरानी के लिए सैनिक रखे जाते थे। तो देखा न आपने, अपना आम हमेशा ख़ास रहा है और ख़ास होकर भी आमजन के जीवन का अहम् हिस्सा। इसीलिए लोकगीतों और लोकगाथाओं में भी इस की गहरी पैठ रही है और फ़िल्मों में भी। ये गीत तो सुने ही होंगे आपने –

  • झूला तो पड़ गए अमवा की दार पे जी
  • झूरा किनने डारा री अमरैया-उमराव जान-शाहिदा ख़ान

ये हमारी ज़िंदगी का इतना अहम् हिस्सा है कि इसका इस्तेमाल पूजा-पाठ में भी किया जाता है। यज्ञ-हवन में आम के पेड़ की लकड़ियों का ही इस्तेमाल किया जाता है और इसके पत्तों की बंदनवार बना कर दरवाज़ों को सजाया जाता है। इसके पेड़ की डाली इतनी मज़बूत होती है कि उस पर झूला डालने का चलन भी बहुत पुराना है जो आजकल शहरों में तो नहीं दिखता।

आम

अब बात करते हैं इस के स्वाद की। कच्ची कैरी हो या पका हुआ आम, आप इसे किसी भी रूप में खा सकते हैं – चटनी, अचार या  मुरब्बा हो या मेंगो खीर, आमपना, मिठाइयाँ, कुल्फ़ी, आइस क्रीम और शेक। अब तो केक-पेस्ट्री भी मेंगो फ्लेवर में आने लगी हैं और सॉफ्ट ड्रिंक भी। इनके अलावा आमपापड़ और अमचूर तो हैं ही।

स्वाद के अलावा पौष्टिकता में भी इसे पूरे नंबर मिलते हैं क्योंकि ये ज़रूरी विटामिन्स और मिनिरल्स का बेहतरीन स्रोत (Source) हैं। एनएचएस वेबसाइट के अनुसार 19-64 वर्ष की आयु के वयस्कों को एक दिन में 40 मिलीग्राम विटामिन सी की आवश्यकता होती है, और एक कप आम में लगभग 60 मिलीग्राम विटामिन सी होता है। इसके स्वास्थ्य लाभ यहीं नहीं रुकते… आम में बीस से ज़्यादा अलग-अलग तरह के विटामिन और खनिज होते हैं। इनमें विटामिन ए, पोटेशियम, और फाइबर उच्च मात्रा में होते हैं। इसका गूदा तो सबका पसंदीदा है ही, इसकी गुठलियाँ भी कई रोगों के इलाज में काम आती हैं। 

मज़ेदार तथ्य ( Mango Facts)

  • ये सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, और फिलीपींस का भी राष्ट्रीय फल है। यह बांग्लादेश का राष्ट्रीय वृक्ष भी है।
  • बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए ये एक पवित्र वृक्ष है। ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध ने हरे-भरे आम के पेड़ों की शांतिपूर्ण छाया में साथी भिक्षुओं के साथ ध्यान और विश्राम किया। इसीलिए बौद्ध धर्म में इसके पेड़ को उच्च स्थान प्राप्त है।
  • दुनिया भर में 43 मिलियन टन से अधिक आम का उत्पादन होता है। लेकिन दुनिया भर में इसका सबसे ज़्यादा उत्पादन भारत में होता है। क़रीब18 मिलियन टन से अधिक, वो भी ज्यादातर घरेलू खपत के लिए।
  • ब्रिटेन में आम दुनिया के हर कोने से मंगवाए जाते हैं, वर्ष के शुरुआत में पेरू से, फिर पश्चिम अफ्रीका, उसके बाद इज़राइल, मिस्र और फिर ब्राजील से।
  • सबसे पुराना जीवित आम का पेड़ 300 साल पुराना माना जाता है जो मध्य भारत के पूर्वी खानदेश में पाया जाता है। हैरानी की बात ये है कि ये प्राचीन पौधा अभी भी फल देता है!
  • गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार, सबसे भारी रिकॉर्ड किए गए आम का वजन 3.435 किलोग्राम और लंबाई 30.48 सेंटीमीटर, परिधि में 49.53 सेंटीमीटर और चौड़ाई 17.78 सेंटीमीटर मापी गई। 2009 में ये फिलीपींस के एक बाग़ीचे के पेड़ से काटा गया था।

तो इन गर्मियों में ख़ुद भी खाइए और दूसरों को भी खिलाइए। लेकिन वो कहते हैं न अति हर चीज़ की बुरी होती है। ज़्यादा आम खाने से पेट में गड़बड़ भी हो सकती है और वज़न भी बढ़ सकता है, तो ज़रा सा कण्ट्रोल करें। इस तरह आप इन्हें खाने का सही मज़ा ले पाएँगे।

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