जिसको ना दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला

आसफ़-उद-दौला अवध के नवाब थे के बारे में एक ज़माने में ये कहावत मशहूर थी कि “जिसको न दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला”। नवाब आसफ़-उद-दौला के बारे में कहा जाता है कि उनकी रियासत में कोई भूखा नहीं सोता था। उसकी रियासत में जब किसी भिखारी को देखा जाता तो उसके कर्मचारी या दरबारी उसे सलाह देते कि वो नवाब के पास जाए और जब कोई पूछता कि क्यों ? तो उसके कारिंदे कहते थे कि “जिसको न दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला”। ‘अंधा क्या चाहे दो आँखें’ लोग तुरंत नवाब के पास जाते, उनकी इच्छा पूरी हो जाती तो वो भी यही कहते फिरते कि”जिसको न दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला” 

जिसे न दे मौला उसे क्या देगा आसफ़-उद-दौला ?

एक बार बादशाह के कारिंदे शहर में गश्त लगा रहे थे उन्होंने एक फ़क़ीर को इधर उधर भटकते देखा। वो फ़क़ीर के पास गए और उस से भी उन्होंने यही बात कही। फ़क़ीर था अल्लाह का बन्दा उसने उनकी बात बहुत इत्मीनान से सुनी और हँसने लगा। उसे हँसते देखकर कारिंदों ने पूछा – कि हँस क्यों रहे हो ? तो उस फ़क़ीर ने कहा – “जिसे न दे मौला उसे क्या देगा आसफ़-उद-दौला” ?

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नवाब के कर्मचारी को ये बात सुनकर बड़ा अचरज हुआ, अक्सर तो लोग ये बात सुनकर नवाब को दुआएं देते हुए उसके पास चले जाते थे और ये फ़क़ीर हँस रहा था। कारिंदे ने ये पूरा वाकया जाकर नवाब को कह सुनाया। नवाब ने सोचा कोई दुनिया का ठुकराया हुआ होगा इसीलिए ऐसी बातें कर रहा है। उसका विश्वास क़ायम करने और अपनी शोहरत को और ज़्यादा बढ़ाने के इरादे से नवाब ने एक योजना बनाई।

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अगले दिन नवाब अपने लाव-लश्कर के साथ उसी जगह पर गया और ख़ैरात बांटने लगा। उस दिन वो तरबूज़ बाँट रहे थे जब उस फ़क़ीर की बारी आई तो कारिंदे ने नवाब को इशारा कर दिया और नवाब ने एक बड़ा सा तरबूज़ उस फ़क़ीर को दे दिया। फ़क़ीर उस तरबूज़ को लेकर आगे बढ़ गया। उसके बाद जिस व्यक्ति की बारी थी उसे नवाब ने एक आम तरबूज़ दिया। फ़क़ीर ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा मुरझा गया। फ़क़ीर उसके पीछे गया तो देखा उसका तीन लोगों का परिवार था और तरबूज़ बहुत छोटा था उस से सिर्फ एक ही व्यक्ति का पेट भर सकता था।

जिसको ना दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला

जिसको न दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला

एक छोटे से तरबूज़ से तीन लोगों का पेट कैसे भरेगा यही सोचकर फ़क़ीर ने अपना तरबूज़ उस व्यक्ति से एक्सचेंज कर लिया। अगले दिन नवाब ख़ैरात बाँटने फिर उसी जगह पहुंचे तो उन्हें उस फ़क़ीर को देखकर बहुत हैरानी हुई और उन्होंने उससे पूछा कि तुम्हें तो मैंने हीरे-जवाहरात से भरा तरबूज़ दिया था फिर तुम आज यहाँ क्यों खड़े हो ? ये सुनकर फ़क़ीर बहुत ज़ोर से हँसा, उसे हँसते देखकर नवाब आसफ़-उद-दौला और उसके कारिंदे हैरत में पड़ गए। तब उस फ़क़ीर ने नवाब को सारी बात खुल कर बताई और फिर अपनी बात दोहराई – “जिसको न दे मौला उसको क्या देगा आसफ़-उद-दौला”

सच यही है अगर ऊपर वाले ने आपकी किस्मत की लकीरों को मिटटी से लिखा है तो दुनिया का कोई भी इंसान उन्हें सोने चांदी में नहीं बदल सकता और अगर परमात्मा आपको सब कुछ देना चाहता है तो दुनिया का कोई इंसान उसे आपसे छीन नहीं सकता। पर अक्सर हम ये बात भूल जाते हैं…… और खुद को सर्वशक्तिमान मानने लगते हैं। इस भ्रम में जीते हैं कि सब कुछ हमारे नियंत्रण में है जबकि सच्चाई ये है कि हमारे नियंत्रण में कुछ नहीं है। हम सिर्फ रंगमंच की कठपुतली की तरह अपना पार्ट निभा रहे हैं और अपने किये कर्मों का फल पा रहे हैं।

लेकिन आसफ़-उद-दौला जैसे राजा नवाब जिनके पास ताक़त है, पैसा है, कुर्सी है, या उन जैसी सोच रखने वाले इंसान भी वो खुद को ही हर बात का श्रेय देते हैं और उसके लिए अच्छाई और बुराई में किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। जबकि सच यही है कि हमारे हाथों में लकीरें तो हैं मगर किस्मत का रिमोट नहीं।

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