हेमलता

हेमलता एक ऐसी गायिका जो 13 साल की उम्र से इंडस्ट्री से जुड़ी हैं। पहले उन्होंने बाल कलाकारों के लिए गाया फिर जब नायिका के लिए अपनी आवाज़ दी तो कितने ही यादगार नग़में हमें सुनने को मिले। 70 के दशक में उनके गाए गीत बहुत ही मशहूर हुए।

हेमलता शुरुआत में लता मंगेशकर जैसा ही गाती थीं 

16 अगस्त 1954 को हैदराबाद में जन्मी हेमलता इंडस्‍ट्री की उन गिनी-चुनी सिंगर्स में हैं, जिन्हें लता मंगेशकर के साथ काम करने का मौक़ा मिला, आपको जानकार हैरानी होगी कि हेमलता जब पैदा हुईं तो उनका नाम भी लता था, लता भट्ट। हेमलता मानती हैं कि शुरु शुरु में उनके गानों में लता जी जैसी ही समानता थी। उनकी ही जैसी आवाज, उनकी तरह ही सुर के साथ हरकतें, इसीलिए हेमलता को अपने आप पर बहुत मेहनत करनी पड़ी।

उनके पिताजी ने भी उनसे कहा था – कि तुम लता को मत सुनो, दूसरे सिंगर्स को सुनो, हर फूल की अपनी अलग खुशबू और रंग होते हैं, उसे ऑब्जर्व करो। तब हेमलता ने एक साल तक लता मंगेशकर के गानों को नहीं सुना, साथ ही जी-जान से अपने संगीत पर मेहनत की, जिसका उन्हें फायदा भी हुआ, इसी से उनकी अलग पहचान बनी।

हेमलता बचपन में पिता से छुप कर गाया करती थीं

हेमलता ने 38 से ज़्यादा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में क़रीब 5000 गाने गाये हैं। ये सब तभी हो सकता है जब इंसान को गाने का जूनून हो, जो कि उनमें बचपन से था क्योंकि घर के माहौल में ही संगीत था। उन के पिता पंडित जयचंद भट्ट किराना घराने के मशहूर गायक थे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान थी। पर वो नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी भी संगीत के क्षेत्र को अपनाए इसीलिए हेमलता ने कभी संगीत सीखने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर नहीं किया। बस पूजा पंडालों में छुप-छुप कर गाती थीं, शायद उनकी प्रतिभा वहीं तक रह जाती अगर एक व्यक्ति ने हिम्मत न की होती।

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हेमलता के पिता के कई शिष्य थे उन्हीं में से एक थे गोपाल मालिक जो बड़े-बड़े concerts और conferences का आयोजन किया करते थे। ऐसा ही एक भव्य आयोजन हुआ था कोलकाता के रबिन्द्र स्टेडियम में जहाँ लता मंगेशकर, किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, हेमंत कुमार जैसे बड़े-बड़े गायक गाने वाले थे। ऐसे स्टेज पर गोपाल मालिक ने हेमलता को इंटरवल में लाइव गाने का मौक़ा दिया और 7 साल की हेमलता को स्टेज पर भेज दिया। उन्होंने गाया “जागो मोहन प्यारे” जब हेमलता ने अलाप के साथ गाना शुरू किया तो उनकी आवाज़ और प्रतिभा से सभी दर्शक इतने प्रभावित हुए कि यही गाना उन्हें 4 बार गाना पड़ा फिर भी वन्स मोर की आवाज़ें आती रहीं।

हेमलता

उस शाम हेमलता ने 12 गाने गाए, उस कार्यक्रम में बंगाल के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे, वो 7 साल की हेमलता की प्रतिभा देख इतने ख़ुश हुए कि उन्हें एक स्पेशल गोल्ड मैडल देने की घोषणा कर दी। बाक़ी सबके साथ उस कॉन्सर्ट में दर्शकों के बीच हेमलता के पिता भी थे जिन्हें गोपाल मालिक ने वहाँ बुलाया था ताकि वो ख़ुद नन्हीं हेमलता की प्रतिभा को आँक सकें। और हुआ भी वही, हाँलाकि उनके पिता आश्चर्यचकित थे, मगर सबके कहने पर वो उन्हें गाना सिखाने के लिए राज़ी हो गए मगर इस शर्त पर कि वो कभी फ़िल्मी गाने नहीं गाएँगी। जबकि वक़्त के साथ साथ फ़िल्मी गानों में उनकी रुचि बढ़ती ही चली गई।

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कुछ सालों बाद उनके पिता अपने पूरे परिवार के साथ मुंबई आए अपनी बहन और अपने दोस्तों से मिलने के लिए। उनके सभी दोस्तों ने हेमलता की आवाज़ और गायकी की तारीफ़ की। और जब पंडित जसराज, उस्ताद अल्लारक्खा ख़ाँ जैसे धुरंधर तारीफ़ करें तो कुछ तो बात होगी। अपने इन दोस्तों की सलाह पर उनके पिता उन्हें नौशाद साहब के पास ले गए। पर नौशाद साहब ने वादा किया कि वो अपनी आने वाली फ़िल्म में उन्हें मौक़ा देंगे मगर वो अगले पाँच साल तक किसी और के लिए नहीं गाएँगी, हाँलाकि जैसे ही नौशाद से उनका नाम जुड़ा उनके पास गाने के ढेरों प्रस्ताव आने लगे मगर कॉन्ट्रैक्ट की वजह से उन्हें सभी ऑफर्स ठुकराने पड़े।

हेमलता ने उनसे प्लेबैक सिंगिंग की ट्रैंनिंग लेनी शुरु कर दी इस उम्मीद पर कि नौशाद उन्हें मौक़ा देंगे और इस बीच वो चार साल तक इंडस्ट्री से दूर रहीं। रियाज़ करती रहीं ताकि उनकी आवाज़ में वो maturity आ जाए जो किसी मंझे हुए गायक में होती है। लेकिन फिर अंतहीन इंतज़ार से थक कर उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने की राह पर क़दम बढ़ा दिए।

कामयाबी की उड़ान

हेमलता ने संगीतकार रोशन के साथ मुंबई के सम्मुखानंद हॉल में एक कॉन्सर्ट किया था जहाँ उनके परफॉर्मेंस को बेहद पसंद किया गया। उसी के बाद उषा खन्ना ने उन्हें गाने के लिए बुलाया। संयोग से वो फ़िल्म पी एल संतोषी की ही थी, और फिर उन्होंने अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया। फ़िल्म थी-“एक फूल एक भूल” गाना था “एक पैसे में राम ले लो”  लेकिन “विश्वास” फिल्म में मुकेश के साथ गाया उनका डुएट बहुत मशहूर हुआ था – ले चल ले चल मेरे जीवनसाथी ले चल मुझे उस दुनिया में प्यार ही प्यार हो जहाँ”

एक बार शुरुआत होने के बाद हेमलता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने उषा खन्ना और कल्याणजी आनंदजी के अलावा एस डी बर्मन, मदन मोहन, एन दत्ता, सलिल चौधरी, चित्रगुप्त, ख़ैय्याम, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे कई संगीतकारों के लिए गाने गाए। पर रविंद्र जैन वो नाम है जिनके साथ उन्होंने सबसे ज़्यादा काम किया। रविंद्र जैन हेमलता के पिता के शिष्य थे और जब वो घर पर सीखा करते थे उनकी कम्पोज़िशन्स को हेमलता अपनी आवाज़ में गाया करती थीं।

रविंद्र जैन और हेमलता के इस साथ ने बेहद लोकप्रिय गीत इंडस्ट्री को दिए। उन्हीं के संगीत निर्देशन में हेमलता की आवाज़ को एक पुख़्ता पहचान मिली। जब फ़िल्म फ़कीरा आई तो उसके टाइटल सांग “अकेला चल चला चल फ़क़ीरा चल चला चल” की लोकप्रियता ने हेमलता के करियर को एक नया मोड़ दिया। हेमलता का करियर और ऊँचाइयों की तरफ़ बढ़ चला जब आई राजश्री बैनर की “चित्तचोर” जिसने उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड दिलाया। इसके बाद राजश्री की पहेली, सुनयना, नैया, गोपाल कृष्ण, अँखियों के झरोखे से, दुल्हन वोही जो पिया मन भाए और नदिया के पार जैसी कितनी ही फिल्मों के लिए उन्होंने गीत गाए।

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रवींद्र जैन  के साथ हेमलता ने कई धार्मिक एलबम्स के लिए भी गाया। रामानंद सागर के टीवी धारावाहिक रामायण और उत्तर रामायण में भी उन्होंने आवाज़ दी। रामायण के एक एपिसोड में वो मीरा का भजन गाती हुई परदे पर भी नज़र आईं। प्लेबैक सिंगिंग के अलावा वो दुनिया भर में कंसर्ट्स के लिए जाती हैं। उन्होंने अमेरिका में अपनी म्यूज़िकल अकादमी शुरू की है जो दुनिया भर में शास्त्रीय और लोक संगीत के साथ-साथ “गुरमत संगीत” का भी प्रचार प्रसार कर रही है।

हेमलता ने भारत की अलग-अलग  भाषाओं के लोक गीतों पर रिसर्च भी की है। वो वक़्त के साथ आगे बढ़ने में विश्वास रखती हैं इसीलिए गीत-संगीत के बदलते रूपों से भी ख़ुद को जोड़े रखती हैं। हेमलता ने बाल कलाकार रह चुके योगेश बाली से शादी की थी। 1988 में उनकी मौत के बाद से हेमलता अपने काम में ही व्यस्त रहती हैं।

हेमलता

तीन भाईयों की एक बहन हैं हेमलता, उनके परिवार के तार कई फ़िल्मी हस्तियों से जुड़े हैं। उनके बड़े भाई तबला वादक हैं और सबसे छोटे भाई फ़िल्मों में म्यूज़िक कम्पोज़र हैं। उनकी बड़ी भाभी संगीतकार जमाल सेन के बेटे शम्भू सेन की बेटी और संगीतकार समीर सेन की बहन हैं। हेमलता की शादी हुई गीता बाली की बहन के बेटे योगेश बाली से। जिनकी बहन हैं मशहूर अभिनेत्री योगिता बाली (जिनकी पहली शादी किशोर कुमार से हुई थी और फिर मिथुन चक्रबर्ती से)

लता मंगेशकर के साथ हुए विवादों और अपने साथ हुई राजनीति पर पहली बार उन्होंने कुछ खुलकर बोला

उन्होंने कहा कि – “मीडिया में तब जो बातें हुईं, वो मीडिया का पार्ट है। मेरा नहीं, मैं खुद भी तो उनकी फैन हूं, उनके अस्तित्व का अनुभव किया है, कि वो कैसे उठती-बैठती, पहनती-ओढ़ती, लोगों के साथ उनका बात करने का व्यवहार कैसा था, उनका गाना। पहली बात जो मैंने उनसे सीखी वह यह थी कि किसी के जैसा होना किसी आर्टिस्ट को कभी फायदा नहीं देता। सिर्फ नुकसान होता है।”

हेमलता कहती हैं कि अगर उन्होंने मेरे साथ कोई पॉलिटिक्स की है, तो उसे भी मैंने आशीर्वाद की तरह लिया है। उनके पिताजी ने उन्हें समझाते हुए कहा था, – “देखो तुम्हें लेकर वह (लता जी) कितनी कॉन्शस हैं। यह बड़ी बात थी कि वह उस मुकाम पर पहुंचकर भी ओवर कॉन्फिडेंट नहीं थीं। ऐसा नहीं सोच रही थीं कि आने दो हमारा क्या बिगाड़ लेगी, उन्होंने यह सोचा कि अगर उसके गाने हिट हुए और वह छा गई तो वह क्या करेंगी।” मेरे शुभचिंतक कहते थे, – “अगर तुम्हारे साथ इस तरह की पॉलिटिक्स हो रही है तो इसे अपनी खुशनसीबी समझो, तुम जरूर उन्हें (लता जी) हार्मफुल लगती होगी। अगर तुमसे उनको डर है तो यह तुम्हारे लिए प्लस पॉइंट है, तुम और ज्यादा रियाज़ करो।”

हेमलता कहती हैं कि यह सब तकदीर की बातें हैं, अच्छे वेलविशर भी तकदीर से मिलते हैं। उस समय के म्यूजिक डायरेक्टर जिम्मेदार लोग थे। मुझे सभी म्यूजिक डायरेक्टर्स ने बड़ी ही जिम्मेदारी से गाने का मौका दिया और मैं टिकी रही, हाँलाकि वो ये भी मानती हैं कि उन्होंने कई बड़े मौक़े इंडस्ट्री में चलने वाली अंदरुनी राजनीति की वजह से गवाएँ। उनकी फ़िल्म अँखियों के झरोखे से के रेकॉर्ड्स को जानबूझ कर मार्किट में आने से रोका गया और बहुत से रेकॉर्ड्स जला दिए गए।

ऐसी बहुत सी घटनाओं ने उनके करियर पर असर डाला फिर जब उनके पति की मौत हो गई तो अपने इकलौते बेटे की परवरिश और सास-ससुर की देखभाल के लिए उन्होंने गाना कम कर दिया। और जब तक वापस लौटीं तो माहौल बदल चुका था। लेकिन कुछ गिने चुने अच्छे प्रोजेक्ट वो करती हैं।

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