हसरत जयपुरी

हसरत जयपुरी वो गीतकार थे, जिनका फ़िल्मों के टाइटल सांग्स लिखने में कोई जवाब नहीं। यूँ तो वो हुस्न-ओ-इश्क़ की दास्तान बयाँ करते रोमेंटिक गीतों के रचनाकार माने जाते हैं, पर उन्होंने बहुत ही मशहूर टाइटल सांग्स भी लिखे हैं। तेरे घर के सामने, लव इन टोक्यो, अनाड़ी, मेरे हुज़ूर, झुक गया आसमान, हमराही जैसी फ़िल्मों के कई लोकप्रिय टाइटल सांग्स की रचना उन्होंने की।

हसरत जयपुरी की ज़िंदगी में जब इश्क़ ने दस्तक दी तभी शायरी से भी दिल लगा

इक़बाल हुसैन “हसरत” जिनका जन्म जयपुर में हुआ, और जैसा कि एक समय में चलन था जन्म-स्थान को अपने नाम के साथ जोड़ने का तो उन्होंने भी अपने तख़ल्लुस के साथ जयपुर को जोड़ लिया और बन गए हसरत जयपुरी। 15 अप्रैल 1922 को गुलाबी नगरी में जन्मे हसरत साहब ने वहीं से मिडिल तक की पढाई इंग्लिश मीडियम से की। उर्दू फ़ारसी का ज्ञान उन्हें मिला अपने नाना जी फ़िदा हुसैन फ़िदा से, जो अपने वक़्त के मशहूर शायर थे। और फिर 20 साल की उम्र से ही उन्होंने शेर-ओ-शायरी शुरु कर दी। ये शौक़ तब और परवान चढ़ा जब इश्क़ ने उनकी ज़िंदगी में दस्तक दी।

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हसरत जयपुरी

उनकी पुश्तैनी हवेली के सामने राधा नाम की एक ख़ूबसूरत लड़की रहती थी, जिससे उन्हें इश्क़ हो गया। अपने प्यार की नज़र करते हुए उन्होंने लिखा था – “मेरे महबूब तुझे प्यार करूँ या न करूँ” जो बाद में फ़िल्म “शमा” में शामिल किया गया। और जो पहली चिट्ठी उन्होंने राधा के नाम लिखी थी, मगर उस तक पंहुचा नहीं पाए थे, उसे सालों बाद राज कपूर ने फ़िल्म “संगम” में शामिल किया “ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर के तुम नाराज़ न होना” पर उनका पहला प्यार उन्हें हासिल नहीं हो सका और वो उसे भुला भी नहीं पाए।

कहते हैं हसरत मोहनी के प्रोत्साहन पर उन्होंने शायरी को अपनी ज़िंदगी बनाया था, और फिर इसी ज़िंदगी का पीछा करते हुए वो रोज़ी-रोटी की तलाश में मुंबई चले आए। मुंबई में बहुत संघर्ष करना पड़ा, मिटटी के खिलौने बेचे, फैक्ट्री में मज़दूरी की, कभी भूखे रहे, फुटपाथ पर सोये, यानी गुज़र-बसर के लिए जो कर सकते थे वो सब किया। अपने जूनून, अपने सपनों का पीछा करना आसान भी नहीं होता!

कंडक्टरी में भी ख़ूबसूरत लड़कियों को देखकर शायरी करते थे

काफ़ी मुश्किलों के बाद हसरत जयपुरी को 11 रुपए महीने की पगार पर बस कंडक्टर की नौकरी मिली। रहने का ठौर-ठिकाना था नहीं सो फुटपाथ पर ही सोते थे। 8 साल तक उन्होंने कंडक्टर की नौकरी की। किसी भी व्यक्ति के लिए बस कंडक्टर की नौकरी नीरस हो सकती है मगर हसरत जयपुरी के लिए यही नौकरी प्रेरणा बनी। हसरत जयपुरी आशिक़ मिज़ाज भी थे। बस में वो कभी भी किसी खूबसूरत लड़की का टिकट नहीं काटते थे। बस में सफ़र करने वाली खूबसूरत लड़कियों के ख़यालों से उनके शायरी के शौक़ में रवानगी आई। फिर वो बाक़ायदा मुशायरों में शिरक़त भी करने लगे।

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फुटपाथ पर वो जिन मज़दूरों के साथ सोते थे उनमें से एक उनका बहुत अच्छा दोस्त था, जो एक दिन अचानक गुज़र गया। उसकी मौत पर हसरत जयपुरी ने एक कविता लिखी “मज़दूर की लाश” ये कविता उन्होंने एक मुशायरे में पढ़ी। वहाँ बैठे पृथ्वीराज कपूर उनसे बहुत प्रभावित हुए। उन दिनों पृथ्वीराज कपूर के बेटे राजकपूर एक फ़िल्म बना रहे थे सो हसरत जयपुरी को राजकपूर से मिलने के लिए बुलाया गया। जब हसरत जयपुरी राजकपूर से मिलने पहुँचे तो वहाँ उनके साथ संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन भी मौजूद थे, और संगीतकार के रूप में उनकी भी ये पहली फ़िल्म थी।

हसरत जयपुरी
हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र, राजकपूर

RK, SJ, शैलेन्द्र और हसरत ने दिए एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत नग्में

हसरत जयपुरी को कुछ धुनें सुनाई गईं और अगले दिन हसरत साहब गाना लिखकर ले गए जो सभी को बहुत पसंद आया। और इस तरह 1949 की फ़िल्म “बरसात” से हसरत जयपुरी गीतकार बन गए। उनका पहला रिकार्डेड गाना था – “जिया बेक़रार है छाई बहार है आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है” इसके बाद तो हसरत जयपुरी RK बैनर का अटूट हिस्सा बन गए। R K बैनर, संगीतकार शंकर जयकिशन, गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी के साथ गायक मुकेश। ये पूरी टीम एक तरह से सफलता की गारंटी थी जिसने कई सुपरहिट फिल्में दीं।

सिर्फ़ R K बैनर ही नहीं बल्कि जिस भी फ़िल्म का संगीत शंकर जयकिशन तैयार करते उसमें गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी के ही होते। माना जाता रहा है कि शंकर और जयकिशन धुनें अलग-अलग बनाते थे और नाम दोनों का जाता था। इसी तरह ये भी माना जाता है कि शंकर की धुनों पर गीत शैलेन्द्र लिखते और जयकिशन की धुनों पर हसरत जयपुरी। हाँलाकि जब आप एक टीम के रुप में काम करते हैं तो उस काम को बेहतर बनाने के लिए मिल-जुल कर प्रयास करते हैं। RK बैनर और हसरत जयपुरी का साथ 1971 तक रहा।

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जयकिशन की मौत फिर “मेरा नाम जोकर” और “कल आज और कल” की असफलता के बाद राजकपूर दूसरे संगीतकारों की तरफ़ मुड़ गए। लेकिन 1985 की फ़िल्म “राम तेरी गंगा मैली” में एक बार फिर उन्होंने एक गीत लिखा “सुन सायबा सुन प्यार की धुन मैंने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन” हिंदी उर्दू के मशहूर शायर और गीतकार हसरत जयपुरी ने क़रीब 350 फ़िल्मों में लगभग 2000 गाने लिखे। शंकर जयकिशन के अलावा सज्जाद हुसैन, सी रामचंद्र, दत्ताराम, हेमंत कुमार, कल्याणजी आनंदजी से लेकर नई पीढ़ी के आनंद मिलिंद, नदीम श्रवण और जतिन ललित तक कई संगीतकारों के साथ काम किया।

Awards

1966 में उन्हें फ़िल्म “सूरज” के गीत “बहारों फूल बरसाओ” और 1972 में “अंदाज़ फ़िल्म के गीत “ज़िंदगी एक सफर है सुहाना” के लिए फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ गीतकार के अवार्ड से नवाज़ा गया। फ़िल्म “मेरे हुज़ूर” के गीत “झनक-झनक तोरी” के लिए उन्हें दिया गया “डॉ अम्बेडकर अवार्ड”, “वर्ल्ड यूनिवर्सिटी राउंड टेबल” की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि दी गई। और एक शायर के तौर पर उनके योगदान के लिए उर्दू कॉन्फ्रेंस ने उन्हें जोश मलीहाबादी अवार्ड से नवाज़ा।

हसरत जयपुरी
हसरत जयपुरी

हसरत जयपुरी का पहला प्यार तो परवान नहीं चढ़ा लेकिन अपनी पत्नी से उन्हें जो प्यार, विश्वास और तीन बच्चों का तोहफ़ा मिला उसके लिए वो ख़ुद को हमेशा भाग्यशाली मानते रहे। जब वो बस कंडक्टर से गीतकार बने तो आमदनी भी बढ़ी और उन्हीं दिनों अपनी पत्नी के कहने पर उन्होंने कुछ पैसा प्रॉपर्टी में लगाया। और यही प्रॉपर्टी मुश्क़िल दिनों में उनका सहारा बनी। पैसों की वजह से उन्हें कभी किसी के आगे झुकना नहीं पड़ा, उन्होंने हमेशा अपनी पसंद का काम किया। तभी तो उनके लिखे गीतों में हर रंग मिलता है। चाहे वो डांस नंबर्स हों, मस्ती के गीत, रोमेंटिक, दार्शनिक, ग़ज़लें हों या लोकगीत।

क्या आप जानते हैं कि अनु मलिक गीतकार हसरत जयपुरी के रिश्तेदार हैं ?

हसरत जयपुरी के दो भाई थे और दो बहनें, उनकी एक बहन बिलकिस की शादी अपने ज़माने के मशहूर संगीतकार सरदार मलिक से हुई थी। सरदार मलिक के तीन बेटे हुए – सबसे छोटे अबु मलिक, दूसरे नंबर पर डब्बू मलिक और सबसे बड़े अनु मलिक। इस तरह अनु मलिक हसरत जयपुरी के भांजे हुए। 

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हिंदी-उर्दू को हसरत जयपुरी जुड़वाँ बहनों की तरह मानते थे। हिंदी-उर्दू शायरी पर उन्होंने कई किताबें लिखीं। अपनी मौत के वक़्त भी वो शायरी की एक किताब पर काम कर रहे थे, और कुछ फ़िल्मों के लिए भी पर…. वक़्त ने उन्हें पूरा करने की इजाज़त नहीं दी। 17 सितम्बर 1999 को हसरत जयपुरी इस दुनिया को अलविदा कह गए। पर उनके लिखे गीतों को भुलाना मुमकिन ही नहीं है वो हमेशा उनके चाहने वालों के ज़हन में बसे रहेंगे।

उनके लिखे कुछ यादगार नग़मे –

  • तेरा मेरा प्यार अमर – असली नक़ली
  • बदन पे सितारे लपेटे हुए ओ जान-ए-तमन्ना किधर जा रही हो – प्रिंस
  • आजा रे आ ज़रा – लव इन टोक्यो 
  • अगर तेरी जलवा नुमाई न होती – बेटी बेटे
  • एक घर बनाऊँगा – तेरे घर के सामने 
  • वो चाँद खिला वो तारे हँसे ये रात अजब मतवाली है – अनाड़ी
  • रुख से ज़रा नक़ाब उठा लो – मेरे हुज़ूर 
  • कौन है जो सपनों में आया – झुक गया आसमान 
  • मुझको अपने गले लगा लो ओ मेरे – हमराही  
  • आवाज देके हमें तुम बुलाओ मोहब्बत में इतना ना हमको सताओ – प्रोफ़ेसर
  • तुमने पुकारा और हम चले आए, जान हथेली पर ले आए रे – राजकुमार
  • जिंदगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना – अंदाज़
  • अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खतम – दिल अपना और प्रीत पराई
  • तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे – पगला कहीं का
  • बहारों फूल बरसाओ – सूरज
  • एहसान तेरा होगा मुझ पर दिल चाहता है जो कहने दे – जंगली
  • मारे गए गुलफ़ाम – तीसरी क़सम
  • मोहब्बत ऐसी धड़कन है जो समझाई नहीं जाती- अनारकली

3 thoughts on “हसरत जयपुरी बस में किसी खूबसूरत लड़की का टिकट नहीं काटते थे”

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