अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत

खेत किसान का सब कुछ होते हैं, खेतों में काम करना कोई आसान बात नहीं होती, मगर हमारे भारत देश में शुरू से ही खेती-बाड़ी जीवन यापन का मुख्य ज़रिया रही है। लेकिन खेतों को वही संभाल सकता है जो ज़िम्मेदार हो मेहनती हो और सतर्क हो। हर किसान ये बात समझता है मगर जिसने नहीं समझी उसी के कारण बन गई ये कहावत – अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

एक गाँव में एक व्यक्ति था जो बहुत ही आलसी था, कोई ज़िम्मेदारी नहीं समझता था और जैसा कि हर माँ-बाप सोचते हैं कि शादी करा दो अपने आप ज़िम्मेदारी आ जायेगी तो उसकी भी शादी करा दी। लेकिन शादी के बाद भी उसका आलस दूर नहीं हुआ पर उसकी पत्नी बहुत मेहनती और समझदार थी। वो जैसे-तैसे करके उससे काम करा ही लेती थी। 

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत

कुछ वक़्त ऐसे ही गुज़र गया, इस बीच माता-पिता भी नहीं रहे, अब खेती-बाड़ी की ज़िम्मेदारी आ गई उस किसान के सर पर। मगर उसे कोई ख़ास चिंता नहीं थी पर उसकी पत्नी ने जैसे-तैसे बोल-बोल के उस से खेतों को जुतवा लिया। बीज भी डल गए, पर जब अंकुर फूटे और काँट-छाँट का समय आया तो किसान बुरी संगत में पड़ गया और अक्सर खेतों से ग़ायब रहने लगा।

अब उसकी बीवी बड़ी मुश्किल में पड़ गई, ख़ैर सब कुछ उसने संभाला लेकिन सब कुछ एक साथ संभालना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। उधर खेतों में पौधे बढ़ रहे थे तो उसने अपने पति को किसी तरह बहला-फुसलाकर खेतों की रखवाली के लिए राज़ी कर लिया। उसने खेत में मचान बनवा दिया ताकि किसान वहाँ लेटे-लेटे ही फसलों की रखवाली कर ले। 

वक़्त गुज़रा, फ़सल तैयार होने लगी और जैसा कि होता है फ़सल पकने के दौरान पंछी ज़रूर आते हैं अपने खाने का इंतज़ाम करने और उस समय खासतौर पर देखभाल की ज़रूरत होती है ताकि फ़सल को पंछियों से बचाया जा सके। किसान की पत्नी ने अब तक बहुत मेहनत की थी, पर वो हर समय उन पर नज़र नहीं रख सकती थी इसलिए उसने किसान को फसलों की देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंप दी। किसान के आलसीपन को जानते हुए उसने मचान पर एक टिन का कनस्तर टांग दिया और एक डंडा रख दिया जिससे वो डंडे से कनस्तर को बजाता रहे और पंछी उस आवाज़ से डरकर फसलों से दूर रहे।

किसान रोज़ घर से खाना लेकर निकलता पहले अपने दोस्तों के पास जाकर मज़ा-मस्ती करता। 1-2 घंटे वहाँ बिताकर खेतों पर लौटता और मचान पर जाकर सो जाता। जब सोकर उठता तो थोड़ी देर कनस्तर बजाकर चिड़ियों को उड़ा देता। जैसे-जैसे वक़्त बीत रहा था किसान की दोस्तों के साथ मौजमस्ती भी बढ़ रही थी बग़ैर ये जाने कि उसके पीछे से चिड़ियाँ उसकी फसल के दाने चुग रही है।

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत

जब कटाई का समय आया तो किसान ने देखा कि बालियों में एक भी दाना नहीं है। साल भर की मेहनत की बर्बादी और घर ख़र्च की समस्या सामने खड़ी देखकर किसान को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो अपनी पत्नी से रो-रोकर माफ़ी मांगने लगा। तब उसकी पत्नी ने कहा – अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। बस तभी से ये कहावत कही जाने लगी। 

हम सब की ज़िंदगी में भी ऐसे बहुत से क़ीमती पल आते हैं जिनकी इम्पोर्टेंस हम उस समय नहीं समझ पाते, और ये सोच लेते हैं कि अभी तो ज़िंदगी पड़ी है लेकिन ज़िंदगी कब कैसे हाथों से निकल जाती है हमें पता ही नहीं चलता और जब तक समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। तो वक़्त की,उम्र की, ज़िंदगी के क़ीमती पलों को ख़्वामख़्वाह के भुलावों में ज़ाया मत कीजिये, उनकी इम्पोर्टेंस समझिए ताकि कल कोई आपसे ये न कहे की “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत”।

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