फ़ोन बूथ

न्यूयॉर्क शहर से आख़िरी फ़ोन बूथ हटा दिया गया। 

मई 2022 के मध्य में ये खबर आई थी कि न्यूयॉर्क शहर से आख़िरी फ़ोन बूथ हटा दिया गया। फ़ोन बूथ के नाम से न जाने कितने लोगों की कितनी यादें ताज़ा हो गई होंगी! आपने कभी टेलीफ़ोन बूथ से कॉल किया है ??!!

बीते ज़माने की कई चीज़ें याद बनती जा रही हैं। जैसे चवन्नी बंद हो गई, वीसीआर भी ग़ायब हो चुके हैं, पेजर तो कब आये और कब चले गए पता ही नहीं चला। लेटेस्ट में CDs का नाम ले सकते हैं। ऑडियो CDs मिलती हैं, पर ज़्यादातर लैपटॉप्स में CD प्लेयर आना बंद हो गया है। क्या पता पेजर की तरह जल्दी ही CDs भी ग़ायब हो जाएँ ! 

मुझे याद है कि एक ज़माने में हर किसी की जेब में चिल्लड़ हुआ करती थी ताकि फ़ोन बूथ से फ़ोन करना पड़े तो किसी से छुट्टे न मांगने पड़ें। कोई नंबर मिलाने के बाद बेल जाते ही उसमें 1 रुपए का कॉइन डालना पड़ता था वर्ना कॉल कनेक्ट ही नहीं होती थी और 3 मिनट के बाद वो कॉल automatically डिसकनेक्ट हो जाती थी। उसके बाद आप को फिर से बात करने के लिए फिर से कॉइन डालना पड़ता।

कई बार आप देर तक बात करके बाहर निकलें तो बाहर कॉल करने वालों की एक लम्बी लाइन लगी होती थी। 80s-90s तक लोगों ने फ़ोन बूथ का जमकर इस्तेमाल किया है। इमरजेंसी में काम आने वाले ये फ़ोन बूथ कितने ही रोमांटिक कन्वर्सेशन के गवाह भी रहे हैं और कितने ही breakups के भी। 

वो भी एक दौर था, आज की जनरेशन के लिए ये एक अनोखी चीज़ हो सकती है just like लेटर्स……!!

पब्लिक टेलीफ़ोन बूथ…. वो क्या होता है ??!!

फ़ोन बूथ

 

अभी कुछ दिन पहले ही मैं बच्चों को बता रही थी कि जब मैं कॉलेज में थी तो मैं और मेरी कजिन एक दूसरे को लेटर्स लिखा करते थे। ये सुनकर बच्चों को बहुत हैरत हुई, सजेशन आया कि फ़ोन कर लेतीं, लेटर लिखने की क्या ज़रुरत थी। और साथ ही सवाल भी निकला कि आप दोनों लेटर में लिखते क्या थे ??!! क्योंकि आजकल न तो लिखने का रिवाज रहा है न ही लेटर्स भेजने का। उनकी जगह इ-मेल ने ले ली है जो कि वक़्त की मांग भी है मगर जो मज़ा लेटर पढ़ने में आता था वो किसी इ-मेल या टेक्स्ट में नहीं आता। 

आज जब हर हाथ में मोबाइल फोन्स हैं कई हाथों में दो-तीन फ़ोन भी हैं ऐसे में ये कल्पना करना शायद आसान न हो कि कुछ दशक पहले तक हर कमरे में तो क्या हर घर में भी फ़ोन नहीं हुआ करता था। मोहल्ले में एक या दो लोगों के घर फ़ोन होता था और उनका नंबर ही सब लोग अपने रिश्तेदारों को देते थे ताकि किसी मुसीबत के वक़्त या कोई ज़रुरी ख़बर देने के लिए कॉल किया जा सके।

ऐसे में उस पड़ोसी के लिए मुसीबत हो जाती थी क्योंकि कई बार वक़्त-बेवक़्त फ़ोन आ जाता था, कॉलर आई-डी की सुविधा भी शुरुआत में नहीं होती थी तो पता ही नहीं चलता था कि किसका फ़ोन है। रिसीवर उठाने पर ही जान पाते थे कि कॉल किसी पड़ोसी के लिए है। फिर उन्हें बुलाना या छोड़ा हुआ मैसेज उन तक पहुँचाना, चाहे सर्दी-गर्मी हो या बरसात, दिन हो या रात।हमने भी कई सालों तक अपने पड़ोसियों को इसी तरह परेशान किया। लेकिन जब ख़ुद किसी को फ़ोन करना हो तो टेलीफ़ोन बूथ तक ही जाना पड़ता था या उन दुकानों पर जो अपने यहाँ से फ़ोन की सुविधा उपलब्ध कराते थे। 

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कितना भी धीमे बोलो दूसरों को सुनाई दे ही जाता था। बल्कि अक्सर माहौल ये होता था कि अगर आपका फ़ोन आया है या आप किसी को फोन कर रहे हैं तो सबके कान आपकी बातों पर ही लगे रहते थे।  किससे बात हो रही है, क्या बात हो रही है, कितनी देर तक बात हो रही है इस सब पर नज़र रहती थी। इसीलिए ज़्यादातर Youngsters और जॉइंट फ़ैमिली में रहने वाली लेडीज़ फ़ोन बूथ पर पाई जाती थी। घर के मर्द तो ऑफिस के फ़ोन का इस्तेमाल कर लेते थे, इसलिए कोई टेंशन नहीं थी। मगर महिलाएँ अपना ग़ुबार कैसे निकालतीं ?

जिन्होंने टेलीफ़ोन बूथ नहीं देखे हों वो पुरानी फ़िल्में देख लें। पुलिस को कोई ख़ूफ़िया जानकारी देने वाला अक्सर फ़ोन बूथ का इस्तेमाल करता था। अपराधी भी अक्सर फ़ोन बूथ से ही कॉल करते थे और आशिक़ भी। 

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90s में मोबाइल आने से कुछ साल पहले पीसीओ (PCO) खुल गए थे, तो फ़ोन करने की समस्या काफ़ी हद तक दूर हो गई थी, क्योंकि जगह-जगह सस्ती दरों पर फ़ोन की सुविधा उन पीसीओज़ पर मिल जाती थी। तब से ही पब्लिक बूथ थोड़े कम होने लगे थे और मोबाइल ने तो पूरी तस्वीर ही बदल दी।

आज घरों से लैंडलाइन फोन्स ग़ायब हो चुके हैं उनका इस्तेमाल या तो ऑफिसेस में होता है या सिर्फ़ उन घरों में जहाँ इंटरनेट कनेक्शन टेलीफ़ोन के ज़रिए मिलता है, तो बेचारे टेलीफोन बूथ की क्या बिसात ? पब्लिक फ़ोन बूथ आज दिल्ली जैसे शहर में तो देखने को नहीं मिलते शायद दूसरी जगहों पर हों ! पर कोई गारंटी नहीं है वो काम करते होंगे पर हाँ अगर कहीं वर्किंग हैं तो इससे पहले वो गुज़रे ज़माने की याद बन जाएँ वहाँ से कॉल करके एक एक्सपीरियंस ज़रुर ले लीजिए।  

https://youtu.be/m5VBi6C0BNw
2 thoughts on “एक था पब्लिक टेलीफ़ोन बूथ….”

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