बी आर इशारा

बी आर इशारा वो निर्देशक थे जिन्होंने हिंदी सिनेमा में बोल्ड फ़िल्मों की शुरुआत की, कई बड़े-बड़े नामों को उस वक़्त मौक़ा दिया जब वो कुछ नहीं थे। मगर उनकी गिनती सिनेमा के दिग्गजों में नहीं की जाती। शायद बहुत से लोग उनके नाम से भी वाक़िफ़ नहीं हों लेकिन उनकी पहचान के लिए एक ही फ़िल्म काफ़ी है “चेतना” जो उनकी सबसे ज़्यादा चर्चित फ़िल्म है।

हिंदी सिनेमा में बोल्ड फ़िल्में

70s में कुछ फ़िल्में ऐसी होती थीं जिन्हें माँ-बाप किसी भी क़ीमत पर बच्चों को नहीं दिखाना चाहते थे। हाँलाकि आजकल उस समय से बहुत ज़्यादा बोल्ड फ़िल्में बन रही हैं मगर उस समय ऐसी फ़िल्में दो तरह की बन रही थीं। एक जो यथार्थवादी सिनेमा कहलाती थीं जिनमें गालियाँ भी होती थीं, बॉडी एक्सपोज़र भी, और इरोटिक एक्सप्रेशंस भी मगर उन्हें बेहद ख़ुशी से स्वीकार किया जाता था। ऐसी फ़िल्मकारों में श्याम बेनेगल जैसे कुछ उम्दा निर्देशकों का नाम शामिल किया जा सकता है।

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दूसरी तरह का जो सिनेमा था उसमें विषय संवेदनशील थे, लेकिन उन्हें पेश करने का तरीक़ा अलग था। इसलिए उन पर बोल्ड का टैग लगा दिया जाता था, A सर्टिफिकेट दिया जाता था। उन फ़िल्मों में बड़े कलाकारों की बजाय ज़्यादातर नए चेहरे ही दिखाई पड़ते थे, बजट भी कम होता था। शायद इसीलिए अमूमन ऐसी फ़िल्मों को “बी ग्रेड” फ़िल्मों का दर्जा दिया जाता था।

दूसरी श्रेणी वाली कुछ फ़िल्मों के ज़रिए बी आर इशारा ने मध्यम वर्ग की हिप्पोक्रेसी और नैतिकता पर सवाल उठाए और उनकी फिल्मों ने हिंदी सिनेमा की हीरोइन की पारम्परिक सती-सावित्री की इमेज को तोड़ा। 70 के दशक में बोल्ड और विवादित फिल्में बनाने वाले निर्देशक और स्क्रीन राइटर बी आर इशारा का पूरा नाम था बाबूराम इशारा, हाँलाकि उनका असली नाम रोशनलाल शर्मा था।

बी आर इशारा

बी आर इशारा जो कभी रोशनलाल शर्मा थे

7 सितम्बर 1934 को हिमाचल प्रदेश में जन्म हुआ रोशन लाल शर्मा का। फिल्मों के शौक़ ने उन्हें घर से भागने पर मजबूर किया और वो किशोरावस्था में ही मुंबई पहुँच गए। मुंबई पहुँच कर उन्होंने स्पॉटबॉय से लेकर हर छोटा-बड़ा काम किया, और संघर्ष के इसी दौर में रोशन लाल शर्मा बन गए बाबूराम यानी बी आर इशारा, इसके पीछे भी एक कहानी है।

वो सेट पर स्पॉट बॉय का काम करते थे और जिस प्रोडूसर के साथ वो काम कर रहे थे उनके गुरु का नाम भी रोशन लाल था इसीलिए वो प्रोडूसर उन्हें उनके नाम से नहीं पुकारना चाहते थे तो वो उन्हें बाबू कहकर बुलाने लगे, जैसे छोटे बच्चों को बाबू कहकर बुलाया जाता है। जब बी आर इशारा ने कुछ डायलॉग राइटर के साथ काम किया तो उन्हें लगा कि बाबू नाम में इज़्ज़त नहीं है इसलिए उन्होंने अपने नाम के साथ राम लगा लिया और ख़ुद को बाबूराम कहने लगे। ऐसे ही एक डायलॉग ने उनके नाम के साथ “इशारा” लगा दिया। और इस तरह रोशनलाल बन गए बी आर इशारा।

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फ़िल्मी करियर

बी आर इशारा का सफ़र वाक़ई रोचक रहा, स्पॉट बॉय से असिस्टेंट डायलॉग राइटर फिर डायलॉग राइटर और फिर निर्देशक। ये जानकर हैरत होती है कि बी आर इशारा ने बासु भट्टाचार्य के सहायक के तौर पर फिल्म “तीसरी क़सम” की। दलाल गुहा की फ़िल्म “धरती कहे पुकार के” के संवाद लिखे पर उनके निर्देशन में जितनी भी फ़िल्में बनी उन पर उन निर्देशकों की कोई छाप नज़र नहीं आती जिनके साथ उन्होंने काम किया था।

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एक निर्देशक के तौर पर बी आर इशारा की शुरुआत हुई 60 के दशक के मध्य में आईं “आवारा बादल”, “इन्साफ का मंदिर” जैसी फ़िल्मों से। लेकिन जिस फ़िल्म ने बी आर इशारा को रातों रात चर्चित कर दिया वो थी “चेतना” इस फिल्म की कहानी उन्होंने ख़ुद लिखी थी, जिसे लेकर वो दो निर्माताओं के पास गए पर दोनों ने ही इसे नकार दिया। आख़िरकार एडिटर आई एम कुम्मु इस फिल्म के निर्माण के लिए राज़ी हुए पर उनकी एक ही शर्त थी कि फ़िल्म एक ही शेड्यूल में पूरी होनी चाहिए।

बी आर इशारा इसके लिए तैयार हो गए उन्होंने पुणे के एक बंगले में क़रीब 25 दिन तक शूटिंग की, सुबह साढ़े 5 बजे से रात 11 बजे तक। फिर कुछ और जगहों पर गाना और कुछेक सीन फिल्माए और 28 दिन में फिल्म पूरी की और वो भी एक लाख से भी कम बजट में। “चेतना” अपने समय की बेहद विवादित और चर्चित फिल्म थी साथ ही इसे हिंदी में बोल्ड सिनेमा की शुरुआत माना जाता है।

बी आर इशारा
फिल्म चेतना का पोस्टर और अनिल धवन

“चेतना” से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भोला सा दिखने वाला एक नया हीरो मिला – अनिल धवन, जिन्हें बी आर इशारा से मिलवाया था शत्रुघ्न सिन्हा ने। बी आर इशारा क्रिकेटर सलीम दुर्रानी को भी फ़िल्मी दुनिया में लेकर आए। फिल्म “चरित्र” में सलीम दुर्रानी के साथ परवीन बाबी को भी पहला मौक़ा दिया। कहते हैं म्यूजिक डायरेक्टर बप्पी लाहिरी को भी इसी फिल्म से बी आर इशारा ने पहला मौक़ा दिया। इनके अलावा उस समय बहुत से नए कलाकारों को उन्होंने प्रोत्साहित किया जिनमें डैनी, जाया भादुड़ी, रीना रॉय, अमिताभ बच्चन, रज़ा मुराद, शत्रुघ्न सिन्हा, राकेश पांडे, राज किरण, विजय अरोड़ा जैसे कलाकार शामिल है जिन्होंने बाद में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

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“चेतना” से पहले बी आर इशारा ‘आवारा बादल”, “इन्साफ का मंदिर”, “गुनाह” और “क़ानून” जैसी फिल्में बना चुके थे। और बाद में भी उन्होंने लीक से हटकर अलग-अलग विषयों पर फिल्में बनाना जारी रखा। लेकिन अपने ट्रीटमेंट और बोल्ड विषय के कारण उनकी फिल्मों को अक्सर सेंसर से पास होने में दिक़्क़त पेश आती थी। बी आर इशारा मज़ाक़ में कहने लगे थे कि बी आर का मतलब “बाबू राम” के साथ-साथ “बैन, रिवाइज़” (Ban, Revise) इशारा हो गया है। बी आर इशारा की फ़िल्म “सौतेला भाई” को समीक्षकों की काफ़ी सराहना मिली। राजेश खन्ना के साथ आई “वो फिर आएगी” सिल्वर जुबली हिट रही।

उनकी मशहूर फ़िल्मों में “एक नज़र”, “मान जाइये”, “चरित्र”, “प्रेम शास्त्र”, “क़ाग़ज़ की नाव”, “घर की लाज”, “हम दो हमारे दो”, “लोग क्या कहेंगे”, “दिल की राहें” को शामिल कर सकते है। इनमें से कुछ फिल्मों के कुछ गीत लाजवाब रहे जिन्हें आज भी लोग गुनगुनाते हैं।

“दिल की राहें” अपने गीत-संगीत की वजह से याद की जाती है और “एक नज़र” अपनी स्टोरीलाइन और म्यूज़िक की वजह से। यूँ तो इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी और रज़ा मुराद जैसे कलाकार थे मगर उस समय सभी नए थे और उनका अभिनय बहुत परिपक्व नहीं था। पर फ़िल्म के गाने लाजवाब थे – “पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमरा जाने है”, “हम ही करें कोई सूरत उन्हें बुलाने की”, “पहले सौ बार इधर और उधर देखा है तब कहीं जाके उन्हें एक नज़र देखा है”, “मिलाप” का गाना भी बहुत मशहूर हुआ जिसे मुकेश ने गाया था “कई सदियों से कई जन्मों से तेरे प्यार को तरसे मेरा मन”।

बी आर इशारा

बी आर इशारा ने अभिनेत्री रेहाना सुल्तान से शादी की, जिन्होंने “चेतना” में मुख्य किरदार निभाया था। बी आर इशारा की फ़िल्मों के विषय उस समय के लिहाज़ से बहुत बोल्ड और unusual थे, इसलिए अक्सर  विवादित भी रहे। पर एक्सपर्ट्स का मानना है कि उन्होंने एक नई परिपाटी तैयार की। जो आज हिंदी सिनेमा में दिखाया जा रहा है वो बी आर इशारा ने अपनी फिल्मों के ज़रिए काफी पहले दिखा दिया था।

बी आर इशारा अपने काम को लेकर काफ़ी गंभीर और उत्साही थे। कम बजट में बढ़िया फ़िल्म बनाने का हुनर भी उन्हें आता था। बंगलो में शूटिंग का ट्रेंड भी उन्होंने ही शुरू किया, जो सेट के मुक़ाबले में ज़्यादा वास्तविक लगता था। अपने आख़िरी दिनों में बी आर इशारा परेलेटिक स्ट्रोक से उबर ही रहे थे कि कैंसर ने उन्हें घेर लिया, और 25 जुलाई 2012 को वो हमेशा के लिए मौत के आग़ोश में चले गए। पर जब-जब हिंदी के बोल्ड सिनेमा का ज़िक्र होगा बी आर इशारा का नाम ज़रूर लिया जाएगा।

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