अज़ूरी

अज़ूरी First Item Girl Of Bollywood (20 November 1907/1916 – 22 February 1998 ) हिंदी सिनेमा के अतीत में झांकें तो बहुत सी डांसर्स के नाम उभर कर आते हैं लेकिन वो पहली मशहूर डाँसर जिनकी पहचान एक आइटम गर्ल के रूप में बनी वो थीं – अज़ूरी जिन्हें मैडम अज़ूरी भी कहा जाता था। बॉलीवुड की पहली “आइटम गर्ल” अज़ूरी ने अपनी पूरी ज़िंदगी डांस के नाम कर दी थी। 

Azurie – First Item Girl Of Bollywood

जर्मन डॉक्टर और भारतीय हिन्दू नर्स की बेटी एना मेरी गुइज़लर फ़िल्मों में आने के बाद कहलाईं अज़ूरी जिन्हें बॉलीवुड की पहली “आइटम गर्ल” माना जाता है। बंगलौर में जन्मी अज़ूरी अपने माता-पिता के अलगाव के बाद अपने पिता के साथ रही। उनके पिता चाहते थे कि वो डॉक्टर बने और उन की दिलचस्पी थी इंडियन क्लासिकल डांस-म्यूज़िक में लेकिन उनके पिता को ये बिल्कुल पसंद नहीं था। फिर अपने पिता के कहने पर उन्होंने बेले डांस और पियानो सीखा।

बाद में जब उनके पिता बॉम्बे शिफ्ट हुए तो वहां वो टर्किश राइटर और पॉलिटिकल एक्टिविस्ट ख़ालिदा अदीब ख़ानम के सम्पर्क में आईं, उन्होंने ही उनका नाम एना से अज़ूरी रखा। अतिया फ़ैज़ी के कारण उन का परिचय इंडियन आर्ट से हुआ और फिर पिता की मौत के बाद उन्होंने डांस की प्रॉपर ट्रैंनिंग ली। 

अमेज़िंग अज़ूरी 

अज़ूरी
अज़ूरी

एक फ़िल्म सेट पर जब अज़ूरी से पूछा गया कि क्या वो घड़ा लेकर लहराते हुए चलेंगी तो उन्होंने बिना किसी झिझक वो सीन किया और फिर फिल्में में डांस जैसे उनकी ज़िंदगी बन गया। 1935 से 1947 तक वो भारतीय सिनेमा में बतौर डाँसर दिखाई दीं और कहलाईं बॉलीवुड की पहली “आइटम गर्ल”। लेकिन उस दौर की ज़्यादातर फ़िल्मों का जो हश्र हुआ वही अज़ूरी की फ़िल्मों का भी हुआ अब उनमें से बहुत कम उपलब्ध हैं। 

उनकी पहली फ़िल्म मानी जाती है “नादिरा”। इसके बाद “जेंटलमैन डाकू-38”, “चाबुकवाली-38”, “वतन-38”, “बहन का प्रेम”, “क़त्ल-ए-आम”, “जजमेंट ऑफ़ अल्लाह”, “चन्द्रसेना”, “बालहत्या” जैसी शुरुआती फ़िल्मों के बाद उनकी हैसियत ये हो गई थी कि फिल्में उनके नाम से बिकती थीं। एक बार एक प्रोडूसर ने फ़िल्म में से अज़ूरी का डांस सीक्वेंस हटा दिया तो डिस्ट्रीब्यूटर ने फ़िल्म ख़रीदने से ही इंकार कर दिया। 40s में “झंकार”, “तस्वीर (43)”, “नई दुनिया”, “लखारानी”, “शाहजहाँ” जैसी बहुत सी फ़िल्मों में उनके आइटम नंबर्स आए। 1947 की “परवाना” में उनका एक डांस नंबर था – ‘सैयां ने ऊँगली मरोरी’ को फ़िल्म से हटा दिया गया था।    

वी शांताराम की फ़िल्म “चन्द्रसेना” के मशहूर डांस सीक्वेंस में वो लीड डांसर थीं। वो अज़ूरी के बड़े प्रशंसक थे इसीलिए इस डांस सीक्वेंस में गाते हुए क्लोज़ अप तो एक्ट्रेस रजनी के थे लेकिन लॉन्ग शॉट में अज़ूरी चार और डांसर्स के साथ ड्रम के ऊपर डांस करती नज़र आती हैं। 1941 की नया संसार में भी उनका डांस बहुत मशहूर हुआ – मैं हरिजन की छोरी। 1944 की फ़िल्म रतन में उनका ये डांस भी काफ़ी फेमस हुआ। उन्होंने “माया”, “सोनार संसार”, “लग्न-बंधन” जैसी कुछ बांग्ला फ़िल्मों में भी काम किया। अज़ूरी फ़िल्म मैगज़ीन्स में लगातार कॉलम लिखती थी, जिनका विषय इंडियन डांस और डांसर ही होता था।   

ये उस समय की बात है जब नाच गाने को बहुत अच्छा नहीं समझा जाता था खासकर फ़िल्मों में डांस तो बहुत ही ख़राब बात मानी जाती थी। तो जब अज़ूरी ने फ़िल्मों में परफॉर्म करना शुरु किया तो कई लोगों ने उनका फ़ायदा उठाना चाहा। लेकिन वो बहुत स्ट्रांग थीं, उन्होंने ग़लत नज़र से देखने वाले हर इंसान को ये बताया कि कोई स्त्री अगर अपनी पसंद का काम करती है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो अवेलेबल है। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक प्रोडूसर को उन्होंने थप्पड़ मारा था और एक बहुत बड़े एक्टर को भी सबक सिखाया था।

अज़ूरी
अज़ूरी

अज़ूरी अपने गुड लुक्स और डांस मूव्स के लिए मशहूर रहीं। वो पहली भारतीय फ़िल्म डांसर थीं जिन्हें बकिंघम पैलेस में परफॉर्म करने के लिए बुलाया गया था। कहते हैं जब उन्होंने राधा-कृष्ण डांस किया तो वहाँ बैठा हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो गया था, वहां दर्शकों में जॉर्ज बर्नाड शॉ भी थे।   

अज़ूरी का निजी जीवन 

फ़िल्मों में अपनी जगह बनाने के बाद अज़ूरी ने एक मुस्लिम नेवल ऑफ़िसर से शादी की और देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गईं। वहाँ रावलपिंडी में उन्होंने क्लासिकल डांस की पहली अकादमी खोली जिसका काफ़ी हिंसक विरोध हुआ, उनके नाम पर फ़तवे जारी हुए उनके ख़िलाफ़ काफी कुछ बोला गया लेकिन वहां की एक सोशलाइट मिसेज मणि के दख़ल के बाद सब कुछ शांत हुआ। फिर जल्दी ही वो कराची में पाकिस्तान-अमेरिकन कल्चरल सेंटर की फॉउन्डिंग मेंबर बनी। वो इस्लामाबाद की नेशनल कॉउन्सिल ऑफ़ आर्ट्स की बोर्ड मेंबर भी थीं।

वो मुंबई आती रहती थीं और उसी दौर में उनकी आख़िरी फ़िल्म आई – “बहाना”(60) पाकिस्तानी फ़िल्मों से वो काफ़ी निराश थीं इसीलिए उन्होंने फ़िल्में छोड़ दीं। वो अपने डांस ट्रूप के साथ इंटरनेशनल टूर्स किया करती थीं। 1977 में जब पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू किया गया तो आर्ट कॉउन्सिल को बंद कर दिया गया और औरतों के स्टेज पर डांस करने को ग़ैर-इस्लामिक करार देकर पाबन्दी लगा दी गई तब  वो काफ़ी सालों तक अपने घर और स्कूल में ही डांस सिखाती रहीं। 1998 में अज़ूरी इस दुनिया को छोड़ गईं।  

उन्होंने डांस को सिर्फ़ जिया नहीं बल्कि अपनी पूरी ज़िंदगी डांस को समर्पित कर दी। वो पहली ऐसी डांसर बनी जिन्होंने बहुत सी युवा लड़कियों को फ़िल्मों में डांस करने की प्रेरणा दी। फ़िल्म इतिहास में अज़ूरी का नाम बॉलीवुड की पहली “आइटम गर्ल” के तौर पर अमर रहेगा। 

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Azurie – Bollywood’s 1st “Item Girl”

Azurie First Item Girl Of Bollywood (20 November 1907/1916 – 22 February 1998) If we look into the past of Hindi cinema, the names of many dancers emerge, but the first famous dancer whose identity was made as an item girl was – Azurie also known as Madame Azurie. Azurie, the first “Item Girl” of Bollywood, devoted her entire life to dance.

Anna Marie Gueizelor, the daughter of a German doctor and Indian Hindu nurse, is considered to be Bollywood’s first “item girl” after appearing in films. Born in Bangalore, Azurie lived with her father after the separation of her parents. His father wanted him to become a doctor and he was interested in Indian classical dance-music but his father did not like it at all. Then at the behest of his father, he learned belle dance and piano.

Her first film is considered to be “Nadira”. This was followed by initials like “Gentleman Dacoit-38”, “Chabukwali-38”, “Watan-38”, “Sister’s love”, “Qatl-e-Aam”, “Judgment of Allah”, “Chandrsena”, “Child murder”. After films, his status was such that films were sold in his name. Once, a producer removed Azuri’s dance sequence from the film, the distributor refused to buy the film. In the 40s, his item numbers came in many films like “Jhankar”, “Tasveer (43)”, “Nai Duniya”, “Lakhrani”, “Shah Jahan”. She had a dance number in 1947’s “Parwana” – ‘Saiyaan Ne Ungli Marori’ which was dropped from the film.

After making her way into films, Azurie married a Muslim naval officer and moved to Pakistan after the partition of the country. There he opened the first Academy of Classical Dance in Rawalpindi, which met with violent protests, a fatwa was issued in his name, and a lot was spoken against him, but after the intervention of a socialite, Mrs. Mani, everything calmed down. Then soon she became a founding member of the Pakistan-American Cultural Center in Karachi. She was also a board member of the National Council of Arts, Islamabad. Azurie left this world in 1998.

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