बिल्ली के गले में घंटी बांधना

बिल्ली के गले में घंटी बांधना एक ऐसी कहावत है जो आज के समय में भी लोगों पर पूरी तरह लागू होती है। और इस कहावत के पीछे की कहानी भी बड़ी ही इंटरेस्टिंग है। बिल्ली और चूहों की वो कहानी जो इंसानी मिज़ाज से ज़रा भी अलग नहीं है। खुद पढ़कर फैसला लीजिए।

बिल्ली के गले में घंटी बाँधना

 

एक शहर में एक बड़ा सा उजाड़ खंडहर था, बहुत से चूहे रहते थे वहाँ। किसी का डर नहीं था तो हर तरफ़ खुल कर उछल कूद करते रहते थे, खा-पी के ऐश करते थे। लेकिन एक दिन उनकी ये मस्ती ख़त्म हो गई जब उस खंडहर में एक बिल्ली यूँ ही घूमती-फिरती चली आई। बिल्ली की तो जैसे लॉटरी लग गई इतने सारे चूहों को फुदकते देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। वो तो यूँ ही भटकती हुई वहाँ पहुँच गई थी पर अब उसने वहीं बसने का इरादा कर लिया।

जब भी कोई चूहा अपने बिल से बाहर उसे दिखाई देता वो दबे पाँव जाती और उसे दबोच लेती और अपना पेट भर लेती। अब चूहों की धमा-चौकड़ी बंद हो चुकी थी, सारी आज़ादी ख़त्म हो चुकी थी, वो एक तरह से अपने ही बिल में क़ैदी हो गए थे। और बिल्ली महारानी की तरह जहाँ चाहे वहाँ घूमती थी। कुछ दिन ऐसे ही छुपते-छुपाते चलता रहा लेकिन आज़ादी खोना किसे अच्छा लगता है ? एक वक़्त के बाद चूहे बेचैन हो गए, वो किसी भी तरह बिल्ली को वहाँ से भागना चाहते थे और ज़ाहिर है ये तो दूर का ख़्वाब था लेकिन जान बचाने का तो कोई तरीक़ा निकले।

बिल्ली को भगाने के लिए चूहों ने योजना बनाई

अपनी समस्या के समाधान के लिए एक दिन सभी चूहों ने गुप्त रुप से एक मीटिंग रखी। सभी छोटे-बड़े चूहे उस महासभा में इकठ्ठा हुए। सब अपना-अपना रोना रोने लगे और फिर उम्र में बड़े पाँच चूहों ने यानी पंचों ने कहा कि सभी चूहे एक-एक करके बताएँ कि बिल्ली से छुटकारा कैसे पाया जाए?

कुछ चूहों ने बड़े जोश में आकर अपने उपाय बताए लेकिन कोई भी उपाय कारगर नहीं लग रहा था। तब एक मोटा सा चूहा सामने आया और बोला अगर हमें पहले से बिल्ली के आने का पता चल जाए तो हम सब अपने बिलों में छुप जाएंगे और हमारी जान बच जायेगी।  पंचों ने कहा वो तो ठीक है मगर बिल्ली के आने से तो तिनका हिलने की आवाज़ भी नहीं होती तो कैसे पता चलेगा कि बिल्ली आ रही है।

बिल्ली के गले में घंटी बाँधना

 

तभी बाहर कहीं से घंटी बजने की आवाज़ आई और एक चूहे को आईडिया आ गया। उसने कहा कि पीछे कबाड़ में एक छोटी सी घंटी है अगर वो किसी तरह बिल्ली को पहना दी जाए तो काम बन सकता है। सारे चूहों को एक रौशनी की किरण नज़र आने लगी, उन्होंने उस चूहे को सर पर बिठा लिया और उसकी अक़्ल की दाद देने लगे। पंचों ने सबको शांत कराया और कहा – आप सब भूल रहे हैं कि वो घंटी बिल्ली पहनेगी कैसे ? उस चूहे ने कहा – एक धागे की ज़रुरत पड़ेगी उसमें घंटी डाल कर उसे बिल्ली के गले में बांध देंगे। ये सुनकर चुहों के मुँह फिर उतर गए कि आख़िर धागा कहाँ से आएगा ?

पंचों ने कहा – चलो धागा मिल भी गया तो वो घंटी बिल्ली के गले में बांधेगा कौन ? इस सवाल पर सारे चूहे चुप हो गए और एक एक करके वहाँ से निकल लिए क्योंकि जो भी घंटी बांधने जाता वही बिल्ली का भोजन बन जाता और अपनी जान कोई नहीं गँवाना चाहता था, इसीलिए सभा बिना किसी फ़ैसले के समाप्त हो गई। आख़िर बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधता ? 

वो तो चूहे थे उन्हें तो कायर ही माना जाता है इसीलिए डरपोक इंसान को चूहा कह देते हैं। पर देखा जाए तो अपने से ताक़तवर के आगे हर इंसान चूहा है जो कितनी ही बड़ी छोटी बिल्लियों के गले में घंटी बांधने से बचता है। हर तरह का हैरासमेंट झेलता है मगर मुँह से एक शब्द नहीं निकालता। क्योंकि वो डरता है कभी अपनों की नाराज़गी से, कभी समाज में बनी अपनी रेपुटेशन के ख़राब होने से, कभी किसी के ख़ौफ़ से और जिसे डर कर जीने की आदत पड़ जाए वो तो फिर चूहा ही हुआ न !

इन्हें भी पढ़ें –

धन्ना सेठ

ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है ?

अभी दिल्ली दूर है

99 का फेर

बीरबल की खिचड़ी

जिसको ना दे मौला उसको दे आसफ़-उद-दौला

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत

 

One thought on “बिल्ली के गले में घंटी बाँधना क्या कभी संभव होगा ?”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *